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मन मेरे तू क्या होता?
जो मुझको तू भा जाता
कर लेता मुझको दीवाना
तो मैं तुझको अपनाता

मन मेरे तुलसी दल होता
मोहन के मस्तक पर सोहता
पा जाता जीवन निर्वाण
तो मैं तुझको अपनाता

मन मेरे जमुना जल होता
कृष्णा के तन को छू जाता
पा जाता तू सम्मान
तो मैं तुझको अपनाता

मन मेरे तू हरिपथ होता
प्यारे के चरणों को छूता
पा जाता सुजीवन सोपान
तो मैं तुझको अपनाता

मन मेरे तू दर्पण होता
कृष्णा के छवि को दर्शाता
कहलाता तू बड़ा महान
तो मैं तुझको अपनाता

मन मेरे तू वाणी होता
निश दिन हरी गुंजन तू करता
बस जाता तू सब के प्राण
तो मैं तुझको अपनाता

मन मेरे तू आत्मा होता
हर पल तू उस में ही रहता
करता रहता हरी गुणगान
तो मैं तुझको अपनाता

कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 22, 2014 at 11:12am

मन के विविध स्वरुप की कल्पना  मन को छूती है i

Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2014 at 10:49am
सुंदर भाव लिए, उत्तम रचना के लिए बधाई ....

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