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जब बेटी घर से विदा हो जायेगी..

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी..

   - शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"

 

ये घर दरो दीवार सब तरसेंगे

जब बर्तन खन खन खनकेंगे

सारे पकवान फ़ीके पड़ जायेंगे

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

बात बात पर उसका नाम

मेरी जुबां पे कभी तेरी जुबां पे

सांसें बहन की अटकी रह जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

वो जो दिन भर लडता था भैय्या

पापा जिसको धमकाते थे

ताकेगा दीवारों को चुपचाप

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

फ़ूलों की रंगत तब कैसी होगी

खुश्बू भी फ़िर न सुहायेगी

चिड़ियों की चहक भी रुलायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी

बागीचे की गिलहरी क्या भूखी होगी

गमलों में डालेगा अब कौन पानी

क्यारी अब सूखी हो जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

दादा की चाय की प्याली

भरी भी लगेगी अब खाली

दादी गुम सुम हो जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

तेरी सहेलियों की वो सारी बातें

कमरे से आती हंसने की आवाज़ें

मुंडेर की बुल बुल चुप हो जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

घर से दफ़्तर अब दूर होगा

मेरा सेहन अब सूना होगा

शायद ज़हन भी अब गीला होगा

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

रख कर सिर पर बेटी के हाथ

बस बाप दुआ देता रह जायेगा

माँ बिलखती हुई रह जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

=========================

रचनाकाल: फ़रवरी १६,२०११

Views: 9937

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Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on March 1, 2011 at 2:06am
Ashvani ji...shukriya aapka.
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 28, 2011 at 11:57pm
BAHUT SUNDAR BADHAI AAP KO
Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 10:21pm
Bagi, ji..bus aapki du'a hai...bahut bahut shukriya..!!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 28, 2011 at 10:09pm

शम्स भाई एक एक शब्द तोल तोल कर रखा है आपने, विदाई के समय का दर्द तो वही समझ सकता है जो एक बेटी का पिता,  माता , भाई बहन हो , सच मैंने सहा है इसको , अजीब उलझन है , एक गीत याद आ रही है .....

 

ये  कैसी घडी आई है , मिलन है जुदाई है ....

 

बेहद संजीदा काव्य कृति पर बहुत बहुत आभार ...

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 8:59pm
Admin Saheb...meherbaani aapki..photo ek taraf laga kar...aapne kavita ke pravah ko ek jut kar diya..Shukriya.
Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 8:58pm
Jain Saheb...bahut bahut shukriya aapaka..
Comment by अमि तेष on February 28, 2011 at 8:48pm

dil ko chu gyi

dhanyabaad

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 7:11pm
योगराज जी, बिना संवेदनाओं के आदमी इंसान नहीं बनता..कामरेड होना थोडा और आगे की बात है, बिना प्रेम के क्रांति कैसे संभव..खैर यह एक अलग मौजू है..यह कविता आपको पसंद आयी, और आपने आपने कीमती वक्त का एक हिस्सा अपनी प्रतिक्रिया देने में किया है..इसके जरुर कुछ मायने होंगे...मैं आपका आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ. अभिनव जी मैं आपको भी शुक्रिया अदा करता हूँ, बस प्रेम छैय्या बनाये रखिये..सादर
Comment by Abhinav Arun on February 28, 2011 at 2:13pm
मर्म स्पर्शी रचना !! बिलकुल मनोभावों का यथार्थ परक चित्रण !! 

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 28, 2011 at 9:57am
शम्स भाई, एक "कामरेड" की कलम से इतनी भावुक कविता का सृजन मेरे लिए वाकई एक सुखद आश्चर्य रहा ! आपकी यह मर्मस्पर्शी काव्यकृति मैंने बेटी की शादी से पहले भी देखी थी, मगर जानबूझ कर पढी नहीं थी ! दरअसल मैं चंद आँसू बेटी की विदाई के लिए महफूज़ रखना चाहता था !  बेटी की शादी को मद्देनज़र रख आपने को काव्यांजली का "शगुन" पेश किया, मैं उसके लिए दिल से ममनून हूँ , सादर !

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