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22122

लाचार हो क्या?

सरकार हो क्या?

छुट्टी पे छुट्टी,

इतवार हो क्या?

छूते ही ज़ख़्मी,

औजार हो क्या?

बेचा है खुद को,

बाज़ार हो क्या?

तारीफ कर दूँ,

अशआर हो क्या?

खुद से ही बातें,

बीमार हो क्या?

*****************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 779

Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 9, 2014 at 7:10pm

छोटी बह्र की सुंदर गजल … बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या? .... बहुत खूब … हार्दिक बधाई आदरणीय राम शिरोमणी ज़ी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 9, 2014 at 5:09pm

खुद से ही बातें,

बीमार हो क्या?  ----वाह ....छोटी सी बह्र पर सुन्दर सी ग़ज़ल.बधाई आपको.  

Comment by Shyam Narain Verma on May 9, 2014 at 3:58pm
अच्छी गजल के लिये बधाई.....................

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