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“मालिक..!  मुझे एक माह की छुट्टी चाहिए थी, बहुत जरुरी काम आन पड़ा है.. या हो सके तो एक नये नौकर की जुगाड़ भी कर के रखना.हुआ तो लौटकर काम पर  नहीं भी  आऊँ ” रोज अपने कान के ऊपर से बीड़ी निकाल के पीने वाले रामू ने,  आज सिगरेट का कस खींचते हुए कहा

“अरे भाई..यहाँ  पूरा काम फैला पड़ा है और तू है कि एक माह की छुट्टी की बात कर रहा है,  ऐसा क्या काम आ गया ..?  कि तू काम भी छोड़ सकता है “  गजाधर ने बड़े परेशान होकर पूछा

“ वो काम यह  है कि मेरी ससुराल वाला गाँव, बाँध की डूब में आने वाला था. तो पिछले साल मैं भी वहां एक झोंपड़ी  बना आया था. जिसका मुआवजा मिल सकता है. अब सरकारी काम-काज है समय का क्या ठिकाना कितना लग जाय..? ”  अपनी बात कहते हुए   रामू ने आधी सिगरेट बुझाकर अपने कान के ऊपर दबा ली थी

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 9:51pm

आदरणीय रमेश जी, यहाँ मेरे शहर के पास ही  इंदिरा सागर बाँध परियोजना जो की म.प्र.के  खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बना है इस बाँध के निर्माण से जो पुनर्स्थापन हुआ उस पर से यह कथा को मैंने आप सब के सामने साझा की है. इस पुनर्स्थापन से बहुत से लोग हमारे आस-पास स्थापित हुए. कुछ लोग बहुत बुरी तरह से बर्बाद भी हो गये तो कुछ पहले से अधिक आबाद

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 29, 2014 at 2:47pm

वास्तविकता को समेटे सुंदर व्यंग, आदरणीय जितेन्द्रजी सादर बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 1:50pm

आप बिलकुल सच कह रहीं है आदरणीया राजेश दीदी, किन्तु आज के इस समय में गरीब ही नही  बल्कि मध्यम वर्गी भी पैसों व् अपने शौक पुरे करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते है, चाहे कोई नतीजा निकले न निकले दाव तो आजमा ही लेते है. यह सब कामचोरी, मक्कारी या चादर से बाहर पांव फ़ैलाने का भी परिणाम होता है.

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीया राजेश दीदी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 1:42pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 28, 2014 at 6:14pm

गरीब ऊपर से कामचोर  और  शातिर दिमाग पैसों के लिए कोई भी जुगाड़ करते हैं .....बढ़िया लघु कथा ..बधाई आपको जीतेन्द्र भैया. 

Comment by Shyam Narain Verma on April 28, 2014 at 3:25pm
बहुत ही सुन्दर कथा..........................

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