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आस के दीप गजल

212 212 212 212
गीत गा कर उसे हम सुनाते रहे
हाल दिल का उसे हम बताते रहे

रात भी तो गुजरने लगी थी मगर
पास आये न बाते बनाते रहे

प्‍यार उन से करे हम कहाँ बैठ जब
चाँद से भ्‍ाी उसे हम छुपाते रहे

प्‍यार हमने किया प्‍यार उसने किया
वो मिटाते रहे हम निभाते रहे

माँग उसकी सजाई लहू से मगर
साथ चल ना सके हम बुलाते रहे

फिर मिलेगे कभी ना कभी हम यहाँ
आस के दीप मन में जलाते रहे

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:25pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीया Meena Pathak जी

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:25pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय Sachin Dev जी

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:24pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय शकील जमशेदपुरी जी

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:24pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2014 at 8:24pm

उत्‍साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 12:21pm

यार उन से करे हम कहाँ बैठ जब
चाँद से भ्‍ाी उसे हम छुपाते रहे

फिर मिलेगे कभी ना कभी हम यहाँ
आस के दीप मन में जलाते रहेआदरणीय अखंड भाई   ..आपकी उम्मीद कायम रहे ..इंसान को आशावादी होना चाहिए....दोनों शेर मुझे बेहद पसंद आये ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई .सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 15, 2014 at 6:18pm

आदरनीय अखंड भाई , बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है , मेरी हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें !!

Comment by शकील समर on April 15, 2014 at 4:16pm

धुन में पढ़ गया...मजा आ गया।

Comment by Sachin Dev on April 15, 2014 at 2:57pm

आदरणीय अखंड गहमरी जी, इस सुंदर गजल पर हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:35pm

अति सुन्दर .. बहुत बहुत बधाई 

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