For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रूप की चाहत जिन्हें हर दम रही (ग़ज़ल 'राज')

2122   2122     212

वक़्त की रफ़्तार तो पैहम  रही

जिंदगी की लौ मगर मद्धम रही

 

बर्फ बनकर अब्र जो है गिर रहा 

पीर की बहती नदी भी जम रही

 

ग़म भरे अशआर जिसमे थे लिखे

धूप में भी वो ग़ज़ल कुछ नम रही

 

टूट के बिखरे सभी वो आईने

रूप की चाहत जिन्हें हर दम रही 

 

वक़्त रहते कुछ नहीं हासिल किया

सोचते हैं जिंदगी कुछ कम रही

 

कैसे कह दें वो जहाँ में खुश रहे

आँखे उनकी तो सदा पुरनम रही

 

क्यों दरारें फिर पड़ी उसके निहाँ

जब झड़ी बरसात की झम-झम रही

 

धूप में गुजरी कभी या छाँव में

जिंदगी खद्दर कभी रेशम रही

 

मुफ़लिसी का दर्द वो समझा कहाँ

जब तलक दौलत चमक चम-चम रही

________________________

 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 पैहम =निरंतर 

अब्र =बादल 

मुफ़लिसी =गरीबी ,निर्धनता ,या अभाव का भाव 

निहाँ=अन्दर 

 

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 20, 2014 at 9:00pm

प्रिय राम शिरोमणि जी ग़ज़ल आपको पसंद आई ,आपका तहे दिल से शुक्रिया. 

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 4:26pm

वक़्त रहते कुछ नहीं हासिल किया

सोचते हैं जिंदगी कुछ कम रही///////////////वाह वाह वाह आदरणीया राजेश कुमारी जी  ……  बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 16, 2014 at 5:06pm

आदरणीया राजेशकुमारीजी .

बड़े ही सुंदर तरीके से उदाहरण सहित समझाया आपने, धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 4:49pm

आ० अखिलेश ग़ज़ल की सराहना के लिए दिल से शुक्र गुजार हूँ ,आप जिस अशआर की बात कर रहे हैं उसके भाव पूर्णतः स्पष्ट हैं ,गौर कीजिये सूखी धरती में दरारें पड़ती हैं या गीली में -----बरसात में भी यदि दरारें पड़ रही हैं तो बरसात में कोई तो खोट होगा ?इसी हैरानी के लिए उला में क्यों इस्तेमाल किया गया है --शायद मैं स्पष्ट कर पाई ....इसका बिम्ब उस व्यक्ति के लिए दिया हैजिसको प्रेम की तो कमी नहीं है फिर भी वो व्यथित है क्यों ?

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 16, 2014 at 4:37pm

आदरणीया राजेशकुमारीजी .

गेयता , प्रवाह और भाव की दृष्टि से सबसे खूबसूरत गज़ल । हार्दिक बधाई 

क्यों दरारें फिर पड़ी उसके निहाँ

जब झड़ी बरसात की झम-झम रही

झमाझम बारिश में दरार की संभावना स्वाभाविक है इसलिए  पहली पंक्ति में "क्यों" शब्द खटक रहा है , पूरे शेर को पढ़ो तो आपस मे ही  विरोधाभास है। या शायद मैं ही गलत हूँ। वैसे गज़ल की जानकारी मुझे नहीं है मैं सिर्फ अर्थ और भाव में जाने का प्रयास करता हूँ।

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 1:48pm

आ० डॉ आशुतोष जी अभिभूत करती हुई आपकी इस प्रतिक्रिया से आश्वस्त भी हुई कि ग़ज़ल अपनी बात कहने में सफल हुई ,इस होंसलाफ्जाई के लिए तहे दिल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 1:45pm

चन्द्र शेखर जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभार आपका.  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 1:11pm

आदरणीया राज जी ..इस ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी हर शर एक से बढ़कर एक 

टूट के बिखरे सभी वो आईने

रूप की चाहत जिन्हें हर दम रही 

वक़्त रहते कुछ नहीं हासिल किया

सोचते हैं जिंदगी कुछ कम रही.....जवाब नहीं इस शेर का 

धूप में गुजरी कभी या छाँव में

जिंदगी खद्दर कभी रेशम रही....यथार्थ 

मुफ़लिसी का दर्द वो समझा कहाँ

जब तलक दौलत चमक चम-चम रही...पूरी तरह सहमत हूँ ...मेरी तरफ से आपको हार्दिक शुभकामनाएं सादर 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 1:02pm

टूट के बिखरे सभी वो आईने// वाह्ह क्या शेर है, आ0। अच्छी गजल के लिए दाद!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2014 at 3:19pm

सचिन देव जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभारी हूँ| 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service