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बह्र : २२ २२ २२ २

जीने का या मरने का
ढंग अलग हो करने का

सबका मूल्य बढ़ा लेकिन
भाव गिर गया धरने का

आज बड़े खुश मंत्री जी
मौका मिला मुकरने का

सिर्फ़ वोट देने भर से
कुछ भी नहीं सुधरने का

कूदो, मर जाओ `सज्जन'
नाम तो बिगड़े झरने का
-
(मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:02am

आदरणीय सौरभ जी, नमन आपके भीतर के पाठक को। स्नेह बना रहे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 2:09am

ये झुका मैं.. और... नमन-नमन-नमन ..

ग़ज़ब साहब !! .. पूर्ववत.. मोह लिया.. !

सबका मूल्य बढ़ा लेकिन
भाव गिर गया धरने का.. . .जवाब नहीं. ! .. :-)))

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:50pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ गिरिराज भंडारी साहब। स्नेह बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:50pm

बहुत बहुत धन्यवाद gumnaam pithoragarhi साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:50pm

बहुत बहुत शुक्रिया Sachin Dev साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:49pm

बहुत बहुत धन्यवाद Meena Pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:49pm

बहुत बहुत शुक्रिया भुवन निस्तेज साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:48pm

बहुत बहुत शुक्रिया Mukesh Verma "Chiragh" जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 15, 2014 at 6:16pm

बहुत खूब भाई धर्मेन्द्र , ढेरों दाद हाज़िर है , इस ग़ज़ल के लिये !!

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 15, 2014 at 5:47pm

सबका मूल्य बढ़ा लेकिन

भाव गिर गया धरने का

khoob achchha kahaa hai,,,,,,

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