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गरल (लघुकथा) अन्नपूर्णा बाजपेई

रमीला ने बगल मे बैठी अपनी पड़ोसन से कहा , "तुम्हें पता है खन्ना साहब के बेटे के साथ अल्का की बेटी का चक्कर चल रहा है और तो और कई बार वह रातों को भी घर नहीं आती , मैडम कहती है कि लेट नाइट स्टडीज़ के चलते वह हास्टल मे ही रुक जाती है , बेटी ने कालेज मे ही हास्टल ले रखा है । अरे यहाँ तो किसी को ये जानने की भी फुर्सत नहीं है कि बेटी कहाँ जाती है । " 

रमीला ने आगे कहा," और आज जिस खुशी मे पूजा रखवाई है बेटे की नौकरी के लिए , वह पता है मेरे पति ने सिफ़ारिश करके लगवाई है वरना इनका बेटा तो आपने देखा ही है हमेशा घूमता रहता है और पढ़ा लिखा भी कोई खास नहीं है बस किसी तरह ले दे कर पास करवाया है भाई साहब ने , ये बड़ा दम भरती  फिरती है मेरे बच्चे हीरे है, यकीन न हो तो मिसेज शर्मा से पूछ  लीजिये । क्यों मिसेज शर्मा ! बताइये मै सही कह रही हूँ न । मेरे बच्चे देखिये क्या मजाल है जो मेरी आँख का इशारा न समझें । मै तो मार ही डालूँ । " उसकी पड़ोसन बदले मे मुस्कुरा दी । 

थोड़ी देर बाद रमीला का आवारा टाइप बेटा मुंह मे पान  दबाये घर की चाभी मांगने आया -  " माँ चाभी मुझे दो घर की !! तुम यहाँ बैठी भजन कीर्तन करो । "

उन्होने कुछ कहना चाहा इससे पहले वह बोला ," देती हो या जाऊँ मै अपने दोस्त के घर कल; आऊँगा । बार बार फोन करके डिस्टर्ब  मत करना प्लीज़ । " 

आगे पंडित जी भगवान सत्य नारायण की कथा सुना रहे थे , " एक राजा मोरध्वज हुआ जिसकी इच्छा  से उनके पुत्र ने अपना आधा अंग आरे  से चिरवा कर प्रभु को प्रसन्न किया । " 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by Vindu Babu on April 8, 2014 at 10:00am
आज का सटीक चित्रण!
आपको हार्दिक बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा दी...
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 7, 2014 at 11:05pm

कथ्य सराहनीय 

आदरणीय बधाई, सादर 

Comment by Meena Pathak on April 7, 2014 at 5:35pm

यही तो विडंबना है , हम खुद को नही देखते दूसरों मे दोष ढूंडते रहते हैं .. सुन्दर कथा ..बधाई आप को 

Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 1:10pm

वाह बड़ी दमदार कथा है....समाज का एक महत्वपूर्ण आइना. अन्नपूर्णा जी,हार्दिक बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2014 at 9:25pm

सत्य नारायण की कथा में.. औरतों की बातचीत वो भी दूसरों की घरों में अनावश्यक ताकना झांकना और अपने बच्चों के बारे में बढ़ चढ़ कर बताना... बहुत सी बातें एक साथ साँझा हुई हैं 

लघुकथा का ताना बाना सुन्दर है ...पर अनावश्यक डिटेल्स से बचा जा सकता था लघुकथा में अभी और कसे जाने की काफी गुंजाइश है... सुधिजन लघुकथा विशेषज्ञों की राय भी अवश्य ही लेकर सुधार  कर लीजिये.

शुभकामनाएं 

Comment by vijay nikore on April 5, 2014 at 11:18am

अच्छा संदेश देती लघुकथा के लिए बधाई, आदरणीया।

Comment by Saarthi Baidyanath on April 5, 2014 at 10:56am

कहन की छुअन जानदार है ! सलीके से कड़ी कड़ी जुडती हुई रचना ..एक सन्देश देने में कामयाब रही ! बधाई स्वीकार करें अन्नपूर्णा जी ! सादर प्रणाम ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 4, 2014 at 9:45pm

बहुत बढ़िया विषय पर अपनी रचना साझा की आपने आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी, घर बैठे ही लोग अपने-अपने  बच्चों की तुलना हीरों से कर देते है जबकि असल में...., बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Maheshwari Kaneri on April 4, 2014 at 6:43pm

   बहुत सही लिखा आज कल यही हाल है लोगों का..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2014 at 2:44pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , सब मे कुछ न कुछ कमजोरियाँ होतीं है , बिना जाने बूझे दूसरो की कमिया नही गिनवानी चाहिये , ॥ स्न्दर लघुकथा के लिये आपको बधाइयाँ ॥

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