संविधान की ले शपथ, उसको तोडनहार |
कछु पापी नेता भये, अनुदिन भ्रष्टाचार ||
जोड़ तोड़ के गणित में, लोकतंत्र भकुआय |
हर चुनाव समरूप है, गया देश कठुआय ||
अथ श्री निर्वाचन चालीसा | जिसने भी जनता को पीसा ||१||
वह नेता है चतुर सुजाना | लोकतंत्र में जाना माना ||२||
धन जन बल युत बाहुबली हो | हवा बहाए बिना चली हो ||३||
झूठी शपथ मातु पितु बेटा | सब को अकवारी भर भेटा ||४||
रसमय चिकनी चुपड़ी बातें | मुख में राम बगल में घातें ||५||
अपना ही घर आप उजाडू | झंडे पर लटकाये झाड़ू ||६||
करिया अक्षर भैंस समाना | लैपटाप का हो दीवाना ||७||
आनन ग्रन्थ पढ़े दिन राती | कुर्सी देख फड़कती छाती ||८||
संसद में करवा दे दंगा | पद मिलते ही होय निहंगा ||९||
अनुदिन मुसलमान रटता हो | राष्ट्रवाद पर वह कटता हो ||१०||
वन्देमातरम को हटवा दे | देशभक्ति के चिन्ह मिटा दे ||११||
खुद को धर्म तटस्थ बतावे | मुरदों पर चादर चढ़वावे ||१२||
क्षेत्रवाद का लिए सहारा | जातिवाद का देता नारा ||१४||
सांसद और विधायक भाई | बेटा बेटी लोग लुगाई ||१३||
दे कम्बल फोटो खिचवावे | फिर फिर शिलान्यास करवावे ||१४||
खुद ही गोप और खुद गोपी | इसके सर पर उसकी टोपी ||१५||
उजला कुरता मधुरि बानी | दगाबाज की इहै निशानी ||१६||
भय अरु लाजमुक्त अभिमानी | बाहर से दिखता बलिदानी ||१७||
सब कुछ घोंटा सब कुछ टाला | आयेदिन करता घोटाला ||१८||
धरना और प्रदर्शन चारी | दिवस खाय निशि अनशनकारी ||१९||
कविवर कुरता फाड़ अमेठी | परदे के पीछे माँ बेटी ||२०||
तरुणी दीन चढ़ी इक हांथी | नोटों की माला दे साथी ||२१||
पासवान की लिए लंगोटी | राजनाथ बैठाते गोटी ||२२||
नीति अनीति भूल गठबंधन | टकले पर शोभित है चन्दन ||२३||
खींचतान चौचक भाजप्पा | कडुआ थू मीठा गुलगप्पा ||२४||
मोदी जब फोटू खिचवावे | अगल बगल सब खीस दिखावे ||२५||
नंदा पुष्कर सरग सिधारी | शशि थरूर की दूर बिमारी ||२६||
शीला महामहिम पद सोहै | दिल्ली में पगड़ी मन मोहै ||२७||
सयकिल वाहन चढ अखिलेशा | सात समन्दर पार नरेशा ||२८||
उहाँ अमरीका आजम पायो | कुम्भ प्रशासन पाठ पढ़ायो ||२९||
भैंस खोजता फिरे प्रशासन | धरने पर बैठा है शासन ||३०||
अन्ना जी की हरियर पगड़ी | ममता देख भुजाएं फड़की ||३१||
लोकपाल के हम दीवाने | केवल गाँधी जी को माने ||३२||
कहने को खांटी देशी हैं | पंच कोटि बंगलादेशी हैं ||३३||
चीन हमारे सर पर चढ़ता | पाक हमेशा आगे बढ़ता ||३४||
जिनमे दो कौड़ी का दम है | हम उनके सम्मुख बेदम हैं ||३५||
बेकारी का घाव बड़ा है | भत्ता ले चुपचाप पड़ा है||३६||
युवा नशे में चकनाचूरं | कह हनूज दिल्ली है दूरं ||३७||
नकसलवाद दे रहा धमकी | मनबढ़ इस्लामिक आतंकी ||३८||
नर को नारी से लड़वाते | जन को आजादी दिलवाते ||३९||
भैंसा आगे बजी बीन है | बिजली पानी सड़क हीन है ||४०||
सड़सठ सालों से सतत, लहू रहे हैं सोख |
भारत माता रो रही, लजा गयी है कोख ||
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
हा हा हा.. . एक हास्य प्रधान रचना के लिए धन्यवाद, भाईजी. वैसे हास्य में डाइरेक्ट कहने से बचना चाहिये. बस बिम्बों के मध्य से पाठकों को अर्थ गढ़ने दें.
दूसरे, आप छंदों (यहाँ दोहा और चौपाई) के उचित विधान को पढ़ें. इससे आपको ही लाभ होगा, भाईजी. इस मंच पर आलेख उपलब्ध हैं.
शुभ-शुभ
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई श्री मयंक भाई
रचना को पढ़ने और उसे सराहने के लिए आपका कोटिशः आभार आदरणीय जितेन्द्र भाई..
बहुत बढ़िया चौपाईयां आदरणीय मनोज जी, वर्तमान में देश की सारी समस्यायों का आपने बखूबी चित्रण किया है, आपको हार्दिक बधाइयाँ
रचना को सराहने और उसे मान देने के लिए आपका कोटिशः आभार आदरणीय गिरिराज भाई..
आ. मनोज मयंक भाई , कहीं कोई कोना नही छूटा है , सभी पर आपके तीरों के निशान हैं ॥ बहुत खूब बहुत बधाई ॥
आदरणीय...अखिलेश भाई..आपकी इस प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ..मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की कौन मेरी रचना पढता है..कौन नहीं पढता..हमारा कुनबा छोटा सही किन्तु चेतना के स्तर पर एकरस हो यह पर्याप्त है..रचना को सम्मान देने के लिए आभारी हूँ..देश की दशा इसीलिए बिगड़ी है..क्योंकि हम उसे दिशा देने में असफल रहे किन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है की अरुणोदय होगा..और इन्ही आँखों से होता हुआ देखूंगा...आभार
आदरणीय मनोज भाई,
भारत की भ्रष्ट राजनीति और तथाकथित देश भक्त नेताओं पर चुन- चुनकर करारा व्यंग किया, चौपाई के माध्यम से। ये कहें कि भ्रष्ट नेताओं की लंका ही जला डाली, काश इसे नामी गिरामी लोग पढ़ते ।
कहने को खांटी देशी हैं |
पंच कोटि बंगलादेशी हैं......
इसे स्वतंत्र करके हमने सबसे बड़ी बेवकूफी का काम किया है, ये कहिये कि कुल्हाड़ी पर पैर मारकर पाकिस्तान की बला अपने सिर पर ले ली। हृदय से बधाई इस रचना पर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online