For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाँच दोहे -- ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

दोहे

1)  नारी है सुता ,दारा  धारे  रूप अनेक ।

     बंधन बांधे नेह का  धीरज धर्म विवेक ॥

2)  ये नारी है सृजक नहि अबला कमजोर ।

     रोम रोम ममता भरी सह पीड़ा घनघोर ॥

3)  महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष ।

    जीव जन्तु भटके सभी  ऐसे महल विशेष ॥

4)  माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।

    पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥

5)  सन्मार्ग दो प्रभु दिखा,  दो ऐसा वरदान । 

    सब मिल शुचिता से रहे होवे जग कल्यान ॥ 

संशोधित  

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 9:35pm

सुन्दर प्रयास हुआ है 

माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।

पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥........सुन्दर 

मात्रिकता और विधान को ध्यान रख  एक बार पुनः दोहों को देख कर दुरुस्त कर लें आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on February 21, 2014 at 7:19pm

बढ़िया दोहे हैं!

//नारी है सुता दारा// मुझे इसका अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ.

यदि विषम और सम चरण को अलग करने के लिए कोमा का प्रयोग करना उचित न लग रहा हो तो कथ्य के हिसाब से तो जरूर करना चाहिए. जैसे- //सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान// 

बाकी, आदरणीय अरुण निगम जी के कहे पर ध्यान दें!

इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on February 21, 2014 at 6:53pm

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2014 at 3:39pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी ..वर्तमान के यथार्थ का सुंदर चित्रण करते इन शानदार दोहों के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर 

Comment by annapurna bajpai on February 20, 2014 at 4:16pm

आपका हार्दिक आभार आ0 लड़ीवाला जी , शशि पुरवार  जी । 

Comment by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:05am

आदरणीय अन्नपूर्णा जी भाव सुन्दर है अच्छा प्रयास है ,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 19, 2014 at 6:25pm

प्रयास हेतु बधाई | श्री अरुण कुमार निगम जी की नेक सलाह गौर करने योग्य है | सादर 

Comment by annapurna bajpai on February 19, 2014 at 6:19pm

आदरणीय प्रभाकर जी मैंने मात्राओं को पुनः गिन कर दोहे ठीक कर लिये  है । आपके अनुमोदन की अभिलाषा है । सादर 

Comment by annapurna bajpai on February 19, 2014 at 6:17pm

आदरणीय अरुण निगम जी विधिवत समझाने के लिए आपका हार्दिक आभार , और तीसरे दोहे मे वसुधा हरी न शेष है , रही नहीं । आपका पुनः पुनः आभार आपने समय दिया । सादर 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 18, 2014 at 8:56pm

आ० अन्नपूर्णा जी, लगता है कि मात्रायों की गिनती अभी तक अच्छी तरह नहीं जानी आपने।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service