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फिर बसंत आया (गीत) - कल्पना रामानी

रंग-रँगीले रथ पर चढ़कर।

रस-सुगंध की झोली भरकर। 

फिर बसंत आया।

 

आज नई फिर धूप खिली है।

दिशा दिशा उजली उजली है।

कुहरे वाली बीती रातें।

नया सूर्य है, सुबह नई है।

 

नई इबारत फिर गढ़ने को   

परिवर्तन लाया।

 

गाँव गाँव में झूल पड़ गए।

अमराई के भाग्य खुल गए।  

अँबुआ पर नव अंकुर फूटे।

कुहू कुहू के बोल घुल गए।

 

मृदुल तान मृदु साज़ छेड़कर

कुंज-कुंज गाया। 

 

देख-देख पशुओं का मेला।

पाखी भी उमड़े पर फैला।

खुशबू, रंग, उमंगें पल-पल,

बाँट रहा ऋतुराज नवेला।

 

सघन वनों में जैसे कोई,

जादूगर आया।

 

धरी धरा ने पीत ओढ़नी।

मुग्ध हो रहे मोर-मोरनी।

डाल-पात सब गीत-गीत हैं।

प्रीत-प्रीत हैं कंत-कामिनी।

 

हुलस हृदय ले रही हिलोरें।

हर मन अकुलाया।     

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:21pm

आदरणीय सौरभ जी, सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 10:20pm

आदरणीया प्राची जी, प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार। आपका कहना सही है, कोशिश करके देखूँगी कुछ बदलाव कर सकी तो संशोधन कर दूँगी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 12:55am

इस कविता के मर्म में ताज़ग़ी है. 

सादर बधाइयाँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 8:42pm

बसंत की ख़ूबसूरती को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है 

कुहरे वाली बीती रातें।

नया सूर्य है, सुबह नई है।

नई इबारत फिर गढ़ने को   

परिवर्तन लाया।.......................बहुत ताजगी और विशवास भरी पंक्तियाँ , वाह !

अंतिम बंद भी बहुत सुन्दर शब्द चित्र प्रस्तुत करता है.

फिर भी बंद के भीतर पंक्तियों की तुकान्तता को और साधा जा सकता था.

इस नवगीत के लिए हार्दिक बधाई आ० कल्पना जी 

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 11:40pm

प्रिय बृजेश, रचना पर आपकी उपस्थिति हर्षित करती है। आपका हृदय से धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on February 23, 2014 at 11:40pm

प्रिय शशि, रचना पर आने और सुंदर टिप्पणी करके प्रोत्साहित करने केलिए आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:17am

बहुत सुन्दर गीत है आदरणीय कल्पना दीदी

रंग-रँगीले रथ पर चढ़कर।

रस-सुगंध की झोली भरकर। 

फिर बसंत आया। . रस सुगंध भरा यह गीत आपको हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on February 19, 2014 at 11:47pm

//हुलस हृदय ले रही हिलोरें।

हर मन अकुलाया।//

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई! 

Comment by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 11:18pm

आदरणीय श्याम नरेनजी, जितेंद्र जी, राम शिरोमणि जी, शिज्जु जी,   अनिल कुमार जी आदरणीया अन्नपूर्णा जी,  सरिताजी  राजेश कुमारी जी, रचना सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए आप सबका हृदय से आभार

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 19, 2014 at 9:05pm

गाँव गाँव में झूल पड़ गए।

अमराई के भाग्य खुल गए।  

अँबुआ पर नव अंकुर फूटे।

कुहू कुहू के बोल घुल गए।.............बहुत सुंदर मनभावन

सच! ऋतू परिवर्तन को बहुत ही सुंदर शब्द व् भावों से संजोया आपने आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक बधाई आपको

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