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कह मुकरियाँ (कल्पना रामानी)

इस विधा में मेरा प्रथम प्रयास(1से 10)

1)

रखती उसको अंग लगाकर।

चलती उसके संग लजाकर।

लगे सहज उसका अपनापन।

क्या सखि, साजन?

ना सखि, दामन!

 2)

दिन में तो वो खूब तपाए।

रात कभी भी पास न आए।

फिर भी खुश होती हूँ मिलकर।

क्या सखि साजन?

ना सखि, दिनकर!

 3)

वो अपनी मनमानी करता।

कुछ माँगूँ तो कान न धरता।

कठपुतली सा नाच नचाता।

क्या सखि साजन?

नहीं, विधाता!

 4)

भरी भीड़ में पास बुलाया।

गोद उठाकर चाँद दिखाया।

मन पाखी बन सुध-बुध भूला।

क्या सखि साजन?

ना री झूला!

 5)

दूर-दूर के नवल नज़ारे।

उसकी आँखों देखूँ सारे।

कभी न देता मुझको धोखा।

क्या सखि साजन?

नहीं, झरोखा!

 6)

रातों को वो मिलने आता।

नित्य नया इक रूप दिखाता।

लाज न आए, कैसा बंदा,

क्या सखि साजन?

ना सखि, चंदा!  

7) 

आते जाते मुझे निहारे।

पल-पल मेरा रूप सँवारे।

भला लगे उसका चिकना तन।

क्या सखि साजन?

ना सखि दर्पन!

८)

साथ चले जब सीना ताने।    

बात न वो फिर मेरी माने।    

हाथ छुड़ाकर भागा जाता।

क्या सखि साजन?

ना सखि, छाता!

9)

जब तब कर्कश बोल सुनाए।

मुँह खोले तो जी घबराए।

पाहुन को दे रोज़ बुलौवा।

क्या सखि, साजन?

ना सखि, कौवा!

10)

उसका काला रंग न भाए।

गुण भी कोई नज़र न आए।

फिर भी लट्टू है उसपे मन।

क्या सखि साजन?

ना सखि, बैंगन!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:18pm

सरिता जी, रचना की प्रशंसा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अब इस श्रंखला को आगे बढ़ाना है।

इस क्रम में आपकी रचना का इंतजार रहेगा/सादर  

Comment by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:14pm

आदरणीय रमेश जी, सचमुच उस आयोजन के समय आदरणीय योगराज जी की मुकरियाँ पढ़कर मन में हलचल मच गई थी। प्रयत्न तो करना ही था। विधान पढ़कर समझकर लिखने की हिम्मत जुटाई।

पसंद करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।  

Comment by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:11pm

आदरणीय शिज्जु जी आपके  प्रशंसात्मक शब्दों से मनोबल में वृद्धि हुई है, लगता है प्रयास सार्थक ही हुआ है

Comment by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:09pm

आदरणीय लड़ीवाला जी रचना पढ़कर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार

Comment by Sarita Bhatia on February 11, 2014 at 9:38pm

वाह दी आपने कमाल किया फुर्ती से आपने नई विधा पर हाथ आजमाया बहुत बहुत बधाई आपको 

रमेश भाई ने सही कहा योगराज जी के बताते ही एक ललक सी हुई इसे सीखने की 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 11, 2014 at 7:39pm

वाह आदरणीया कल्पनाजी रचना बहुत अच्छी है बहुत अच्छा एवम सार्थक प्रयास है बहुत बहुत बधाई आपको

सादर,

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 7:29pm

सर्वप्रथम इस सदप्रयास पर आदरणीया आपको कोटिश बधाई । इस बार के लाइव महोत्सव का इसे देन कहू तो अतिशियसोक्ति नही होगी । श्रद्धेय योगराज जी की इच्छा को लक्ष्य कर श्रद्धेय सौरभजी के इस पर आलेख उसपर आपके प्रश्नोत्रर उपरांत यह प्रयास वास्तव में इस विधा में आपके ललक को उजागर करता है । सभी पद अच्छे बन पडे है आदरणीय सौरभजी के आलेख के मापदण्ड के अनुसार यह उचित लग रहा है, जो मै समझ पाया । शैष हमारे गुरूजन ही कह सकते है । किन्तु मुझे आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय लगा । अस्तु कोटिश बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:13pm

बहुत सुन्दर भाव और शिल्प में रचित कह्मुकरियाँ के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना रामानी जी 

कृपया ध्यान दे...

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