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दोहा-१४(विविधा)

रह जाएगा धन यहीं,जान अरे नादान!
इसकी चंचल चाल पर,मत करिये अभिमान!!

सत्कर्मों से तात तुम,कर लो ह्रदय पवित्र!

उजला उजला ही दिखे,सारा धुँधला चित्र!!

सागर में मोती सदृश,अंधियारे में दीप!
पाना है यदि राम को,जाओ तनिक समीप!!

मन गंगा निर्मल रखें,सत्कर्मों का कोष!
ऐसे नर के हिय सदा,परम शांति संतोष!!

जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!!

मन करता फिर से चलूँ,उसी गाँव की ओर!
कोयल गाती थी जहाँ ,नाचा करते मोर !!

गैरों के घर फेकता,पत्थर क्यूँ इंसान!
बना हुआ है काँच का ,तेरा देख मकान !!
********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2014 at 12:17pm

//खुद ही ये छट जायंगे ,सारे धुंधले चित्र ,  के स्थान पर ,  साफ स्वयं हो जायेंगे , सारे धुंधले चित्र  ( कैसा रहेगा) //

शिल्प की दृष्टि से बहुत ही बेकार रहेगा. 

आदरणीय रामशिरोमणीजी, जायंगे  कौन सा शब्द है ? 

ये भाषिक घालमेल या शाब्दिक छूट आदि के प्रति लोभ या उत्साह नहीं है. वस्तुतः यह अध्ययन के प्रति अकर्मण्यता है.

Comment by ram shiromani pathak on February 12, 2014 at 11:25am

अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी। ....  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2014 at 11:03am

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , बहुत खूब सूरत दोहा रचना की है , सभी दोहे एक से बढ्के एक हैं , सुन्दर सन्देश देते ॥ आपको बहुत बधाई ॥

जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!! - ये दोहा खूब पसन्द आया ॥ बधाई स्वीकार करें ॥

खुद ही ये छट जायंगे ,सारे धुंधले चित्र ,  के स्थान पर ,  साफ स्वयं हो जायेंगे , सारे धुंधले चित्र  ( कैसा रहेगा )

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 9:18pm

हार्दिक आभार भाई सिज्जू जी। ……।  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 11, 2014 at 9:13pm

भाई रामशिरोमणिजी बड़ी अच्छी दोहावली आपका दार्शनिक अंदाज इनमें दिखाई दे रहा है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 8:46pm

मेरा प्रयास आपको अच्छा लगा यही मेरे लिए अमूल्य उपहार है,बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश भाई  .........   सादर 

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 8:43pm

उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल भाई  .........   सादर 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 8:19pm

आदरणीय पाठकजी, आप दोहावली के लगातार श्रृंखला प्रस्तुत करते आ रहे है, आपके इस अनवरत प्रयास से आपके दोहा मे नित  निखार आ रहा है, सादर बधाई ।

प्रस्तुत दोहा सुंद र जन आंकांक्षा के संदेश समेटे समर्पित किये है, बहुत बहुत बधाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 11, 2014 at 8:15pm

आ0 रामशिरोमणि भार्इ जी,. सुन्दर भावों को व्यक्त करते बेहतरीन दोहे..।  हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

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