For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रह जाएगा धन यहीं,जान अरे नादान!
इसकी चंचल चाल पर,मत करिये अभिमान!!

सत्कर्मों से तात तुम,कर लो ह्रदय पवित्र!

उजला उजला ही दिखे,सारा धुँधला चित्र!!

सागर में मोती सदृश,अंधियारे में दीप!
पाना है यदि राम को,जाओ तनिक समीप!!

मन गंगा निर्मल रखें,सत्कर्मों का कोष!
ऐसे नर के हिय सदा,परम शांति संतोष!!

जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!!

मन करता फिर से चलूँ,उसी गाँव की ओर!
कोयल गाती थी जहाँ ,नाचा करते मोर !!

गैरों के घर फेकता,पत्थर क्यूँ इंसान!
बना हुआ है काँच का ,तेरा देख मकान !!
********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2014 at 12:17pm

//खुद ही ये छट जायंगे ,सारे धुंधले चित्र ,  के स्थान पर ,  साफ स्वयं हो जायेंगे , सारे धुंधले चित्र  ( कैसा रहेगा) //

शिल्प की दृष्टि से बहुत ही बेकार रहेगा. 

आदरणीय रामशिरोमणीजी, जायंगे  कौन सा शब्द है ? 

ये भाषिक घालमेल या शाब्दिक छूट आदि के प्रति लोभ या उत्साह नहीं है. वस्तुतः यह अध्ययन के प्रति अकर्मण्यता है.

Comment by ram shiromani pathak on February 12, 2014 at 11:25am

अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी। ....  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2014 at 11:03am

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , बहुत खूब सूरत दोहा रचना की है , सभी दोहे एक से बढ्के एक हैं , सुन्दर सन्देश देते ॥ आपको बहुत बधाई ॥

जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!! - ये दोहा खूब पसन्द आया ॥ बधाई स्वीकार करें ॥

खुद ही ये छट जायंगे ,सारे धुंधले चित्र ,  के स्थान पर ,  साफ स्वयं हो जायेंगे , सारे धुंधले चित्र  ( कैसा रहेगा )

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 9:18pm

हार्दिक आभार भाई सिज्जू जी। ……।  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 11, 2014 at 9:13pm

भाई रामशिरोमणिजी बड़ी अच्छी दोहावली आपका दार्शनिक अंदाज इनमें दिखाई दे रहा है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 8:46pm

मेरा प्रयास आपको अच्छा लगा यही मेरे लिए अमूल्य उपहार है,बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश भाई  .........   सादर 

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 8:43pm

उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल भाई  .........   सादर 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 8:19pm

आदरणीय पाठकजी, आप दोहावली के लगातार श्रृंखला प्रस्तुत करते आ रहे है, आपके इस अनवरत प्रयास से आपके दोहा मे नित  निखार आ रहा है, सादर बधाई ।

प्रस्तुत दोहा सुंद र जन आंकांक्षा के संदेश समेटे समर्पित किये है, बहुत बहुत बधाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 11, 2014 at 8:15pm

आ0 रामशिरोमणि भार्इ जी,. सुन्दर भावों को व्यक्त करते बेहतरीन दोहे..।  हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service