जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
कुहरा आया छाए बादल
टिप - टिप बरसा पानी ।
जाने कब मौसम बदलेगा
हार धूप ने मानी ।
गौरइया भी दुबकी सोचे , जाने क्यूँ सकुचाई धूप !
माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
बिजली चमकी , गरजा बादल
हवा चली पछुवाई ।
थर – थर काँपे तनवा मोरा
याद तुम्हारी आयी ।
घने बादलों मे घिर – घिर कर, लेती अब अंगड़ाई धूप !
माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
बढ़ी ठंड पिछले पखवारे
नहीं दिखी परछाईं ।
मेरे आँगन की तुलसी भी
खड़ी – खड़ी मुरझायी ।
इन्तजार मे दिन भी बीता , बादल मे शरमायी धूप !
माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?
------ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरनीय बह्मचारी भाई जी , बहुत खूब सूरत गीत रचना की है , आपको कोटिशः बधाइयाँ ॥
भाई साहब , बहुत सुंदर रचना,हल्की फुल्की मन को भाने वाली....जाने क्यूँ अलसायी धूप....सादर.
आदरणीय ब्रह्मचारी जी एक भावप्रधान गीत के लिए हार्दिक बधाई .
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