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था मेरा, जितना भी था, जैसा भी था, मेरा तो था

बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था
वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय"
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?

अजय कुमार शर्मा
प्रथम , मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Meena Pathak on January 11, 2014 at 12:40pm

बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई आ० अजय जी 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 11, 2014 at 12:09pm

इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई अजय भाई।

ख़ासियत थी इस मगर //   ख़ासियत थी यह ( ये )  मगर

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