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बह्र : हज़ज मुरब्बा सालिम


सदा दिन रात भिनसारे,
गिरें नैनों से अंगारे,

हमें पागल वो कहते हैं,
थे जिनकी आँख के तारे,

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,

घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,

हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,

यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 754

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Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:15am

बहुत बहुत शुक्रिया अजय सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:15am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जीतेंद्र भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:15am

हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:14am

हार्दिक आभार आदरणीय नादिर जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:14am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया सरिता जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:14am

हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:14am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 11, 2014 at 11:13am

हार्दिक आभार श्याम भाई जी

Comment by savitamishra on January 10, 2014 at 8:55pm

बेहतरीन

Comment by अमित वागर्थ on January 10, 2014 at 2:57pm

समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,   बहुत  खूब और सटीक कहा आपने   

लाजवाब सुंदर गजल, आदरणीय अरुण जी दिली दाद कुबूल कीजिये

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