For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (857)

दोहा सप्तक. . . धर्म

दोहा सप्तक. . . धर्म

धर्म बताता जीव को, पाप- पुण्य का भेद ।

कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद ।।

दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख  ।

करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन रेख ।।

सदकर्मों से है भरा, हर मजहब का ज्ञान।

चलता जो इस राह पर, वो पाता पहचान ।।

पंथ हमें संसार में, सिखलाते यह  मर्म ।

जीवन में इन्सानियत, सबसे  उत्तम कर्म ।।

चलते जो संसार में, सदा धर्म की राह ।

नहीं निकलती कष्ट में, उनके मुख से आह ।।

धर्म - कर्म से जो भरे,…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 18, 2025 at 1:09pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार

माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।

संग जीत के हार पर, जीवन का शृंगार ।।

हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।

डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।

जीत हार के सूत में, उलझा जीवन गीत ।

दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।

कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।

जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।

मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।

हर कोशिश में जीत की, मुखरित होती आस ।।

निष्ठा पूर्वक जो करें , …

Continue

Added by Sushil Sarna on January 16, 2025 at 3:00pm — No Comments

शर्मिन्दगी - लघु कथा

शर्मिन्दगी ....

"मैने कहा, सुनती हो ।"रामधन ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा ।

"क्या हुआ, कुछ कहो तो सही ।"

"अरे होना क्या है । अपने पड़ोसी रावत जी की बेटी संजना ने अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ भाग कर कोर्ट मैरिज करके इस उम्र में अपने माँ-बाप को शर्मसार कर दिया ।बेचारे! अच्छा हुआ, अपनी कोई बेटी नही केवल एक बेटा राहुल है ।" रामधन ने कहा।

इतने में डोर बेल बजी टननन ।

"कौन? " रामधन जी दरवाजे खोलते हुए बोले ।

" रामधन जी, अपने संस्कारवान बेटे को…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 15, 2025 at 1:12pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . पतंग

दोहा सप्तक . . . . पतंग

आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।

बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।

बंधी डोर से प्यार की, उड़ती मस्त पतंग ।

आसमान को चूमते, छैल-छबीले रंग ।।

कभी उलझ कर लाल से, लेती वो प्रतिशोध ।

डोर- डोर की रार का, मन्द न होता क्रोध ।।

नीले अम्बर में सजे, हर मजहब के रंग ।

जात- पात को भूलकर, अम्बर उड़े पतंग ।।

जैसे ही आकाश में, कोई कटे पतंग ।

उसे लूटने के लिए, आते कई दबंग ।।

किसी धर्म की है हरी, किसी धर्म की…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 14, 2025 at 8:40pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .जीवन

दोहा पंचक. . . . जीवन

पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।

अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।

ठहरी- ठहरी  जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।

टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।

विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।

टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।

अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।

मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।

पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।

क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।

सुशील सरना / 3-1-25

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . संघर्ष

दोहा पंचक. . . संघर्ष

आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।

फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।

नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।

उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।

ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।

लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।

किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।

सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।

चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।

अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटी

सूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात ।

क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।

मुफलिस को हरदम लगे, लम्बी भूखी रात ।

रोटी हो जो सामने, लगता मधुर प्रभात ।।

जब तक तन में साँस है, चले क्षुधा से जंग ।

बिन रोटी फीके लगें, जीवन के सब रंग ।।

मान-प्रतिष्ठा से बड़ी, उदर क्षुधा की बात ।

रोटी के मोहताज हैं, जीवन के हालात ।।

स्वप्न देखता रात -दिन, रोटी के ही दीन ।

इसी जुगत में दीन यह , हरदम रहता लीन…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 25, 2024 at 2:37pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . .

बाण न आये लौट कर, लौटें कभी न प्राण ।

काल गर्भ में है छुपा, साँसों का निर्वाण ।।

नफरत पीड़ा दायिनी, बैर भाव का मूल ।

जीना चाहो चैन से, नष्ट करो यह शूल ।।

आभासी संसार में, दौलत बड़ी महान ।

हर कीमत पर बेचता , बन्दा अब  ईमान ।।

अन्तर्घट के तीर पर, सुख - दुख करते वास ।

सूक्ष्म सत्य है देह में, वाह्य जगत  आभास ।।

जीवन मे  होता नहीं, जीव कभी संतुष्ट ।

सब कुछ पा कर भी सदा, रहे ईश से रुष्ट ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 23, 2024 at 2:42pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .व्यवहार

दोहा पंचक. . . व्यवहार

हमदर्दी तो आजकल, भूल गया इंसान ।

शून्य भाव के खोल में, सिमटा है नादान ।।

मुँह बोली संवेदना, मुँह बोला व्यवहार  ।

मुँह बोले संसार में, मुँह बोला है प्यार ।।

भूले से तकरार में, करो न  ऐसी बात ।

जीवन भर देती रहे, वही बात आघात ।।

अन्तस में कुछ और है, बाहर है कुछ और ।

उलझन में यह जिंदगी, कहाँ सत्य का ठौर ।।

दो मुख का यह आदमी, क्या इसका विश्वास ।

इसके अंतर में सदा, छल करता है वास ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 21, 2024 at 3:36pm — No Comments

दोहा पंचक. . . दिन चार

दोहा पंचक. . . . दिन चार

निर्भय होकर कीजिए, करना है जो काम ।

ध्यान रहे उद्वेग में, भूल न जाऐं राम ।।

कितना अच्छा हो अगर, मिटे हृदय से बैर ।

माँगें अपने इष्ट से, सकल जगत् की खैर ।।

सच्चे का संसार में, होता नहीं  अनिष्ट ।

रहता उसके साथ में, उसका  अपना  इष्ट ।।

पर धन विष की बेल है, रहना इससे दूर ।

इसकी चाहत के सदा, घाव बनें  नासूर ।

चादर के अनुरूप ही, अपने पाँव पसार ।

वरना फिर संघर्ष में, बीतेंगे दिन चार ।।

सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 20, 2024 at 3:49pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार

दोहा पंचक. . . शीत शृंगार



नैनों की मनुहार को, नैन करें स्वीकार ।

प्रणय निवेदन शीत में, कौन करे इंकार ।।

मीत करे जब प्रीति की, आँखों से वो बात ।

जिसमें बीते डूबकर,  आलिंगन में रात ।।

अभिसारों में व्याप्त है, मदन भाव का ज्वार ।

इस्पर्शों के दौर में, बिखरा हरसिंगार ।।

बढ़े शीत में प्रीति की, अलबेली सी प्यास ।

साँसें करती मौन में, फिर साँसों से रास ।।

अंग-अंग में शीत से, सुलगे प्रेम अलाव ।

प्रेम क्षुधा के वेग में, बढ़ते गए कसाव…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 18, 2024 at 8:19pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .यथार्थ

दोहा पंचक. . . . यथार्थ

मन मंथन करता रहा, पाया नहीं  जवाब ।

दाता तूने सृष्टि की, कैसी लिखी किताब।।

आदि - अन्त की जगत पर, सुख - दुख करते रास ।

मिटने तक मिटती नहीं, भौतिक सुख की प्यास ।।

जीवन जल का बुलबुला, पल भर में मिट जाय ।

इससे बचने का नहीं, मिलता कभी उपाय ।।

साँसों के अस्तित्व का, सुलझा नहीं सवाल ।

दस्तक दे आता नहीं, क्रूर नियति का काल ।।

साम दाम दण्ड भेद सब, कितने करो प्रपंच ।

निश्चित तुमको छोड़ना, होगा जग का मंच…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 10, 2024 at 1:39pm — 4 Comments

कुंडलिया. . . .

कुंडलिया. . . . 

बच्चे अन्तर्जाल पर , भटक  रहे  हैं  आज ।
दुर्व्यसन   में   भूलते, जीवन  की  परवाज ।
जीवन की परवाज , लक्ष्य यह भूले अपना ।
बिना कर्म यह अर्थ , प्राप्ति का देखें सपना ।
जीवन   से  अंजान, उम्र  से  हैं  यह  कच्चे ।
आज  नशे   में   चूर , भटकते  देखे   बच्चे ।

सुशील सरना / 8-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 8, 2024 at 8:00pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . कागज

दोहा पंचक. . . कागज

कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।

तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।

कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।

कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।

कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।

रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।

कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।

हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।

कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।

कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 3, 2024 at 8:57pm — 4 Comments

कुंडलिया ....

कुंडलिया. . . . 

मीरा को गिरधर मिले, मिले  रमा को  श्याम ।
संग   सूर  को  ले  चले, माधव  अपने  धाम ।
माधव  अपने धाम , भक्ति की अद्भुत  माया ।
हर मुश्किल में साथ, श्याम की चलती छाया ।
भजें  हरी  का  नाम , साथ  में  बजे  मँजीरा ।
भक्ति भाव  में डूब, रास  फिर  करती  मीरा ।

सुशील सरना / 1-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 1, 2024 at 9:10pm — 4 Comments

दोहा सप्तक. . . विरह

दोहा सप्तक. .. . विरह

देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।

गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।

चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।

आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।

जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।

जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।

तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।

आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।

पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।

पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।

बड़ा अजब है…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविध

मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।

कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।

जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।

अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।

मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।

निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।

किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।

अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।

अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।

आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता  अर्थ ।।

कल ही कल की सोच में,…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .शीत

दोहा पंचक. . . . शीत

अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।

बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।

धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।

हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।

शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।

गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।

शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।

शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।

धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।

पहन चुनरिया ओस की,  भोर  करे शृंगार ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .मतभेद

दोहा पंचक. . . . मतभेद

इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।

चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।

मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।

एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।

रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।

सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।

मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।

सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।

जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।

जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।

सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 2 Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service