For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब से उनका यहाँ आना जाना हुआ
दिल हमारा भी उनका दिवाना हुआ /


साथ तेरे का जो छूट जाना हुआ
तब से सबका यहाँ आना जाना हुआ /


माँग तेरी भरूं आ सितारों से मैं
ऐसा कह जो गया फिर न आना हुआ /


माँग सूनी हुई जो सितारों भरी
माथे की बिंदी छिनना बहाना हुआ /


राहतें अब कहाँ चैन दिल को कहाँ
मत कुरेदो जख्म ये पुराना हुआ /


याद आती रही रात भर थी मुझे
भूल वो अब गया इक जमाना हुआ /


उसके आने की टूटी है उम्मीद अब
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ /


लाडली ही रही बेटियाँ बाप की
लाड़ छूटे जो पति घर ठिकाना हुआ /

..............................................

........मौलिक व् अप्रकाशित........

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 5:54pm

आदरणीया सरिता जी अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 3, 2014 at 8:34pm

बहुत उम्दा गजल आदरणीया सरिता जी,यह शेर खास पसंद हुआ हार्दिक बधाई स्वीकारें

राहतें अब कहाँ चैन दिल को कहाँ
मत कुरेदो जख्म ये पुराना हुआ

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 8:11pm

वाह क्या बात है,,,,इस शानदार गज़ल के लिये सरिता जी आपको अनेकानेक मुबारकबाद,,,,,,,

Comment by Shyam Narain Verma on January 3, 2014 at 4:10pm
इस भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई आपको । 
Comment by Sarita Bhatia on January 3, 2014 at 9:32am

आदरणीय गिरिराज जी आपकी मार्गदर्शक टिप्पिनी हमेशा उत्साहित करती है हार्दिक आभार स्नेह बनाये रखें उचित सुधार कर लिया है  

Comment by Sarita Bhatia on January 3, 2014 at 9:30am

आदरणीया वंदना जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on January 3, 2014 at 9:29am

शुक्रिया कुंती जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2014 at 7:14am

आदरणीया सरिता जी , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , बहुत सुन्दर भाव हैं ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

मत कुरेदो जख्म ये पुराना हुआ , ये मिसरा बेबह्र हो रहा है  ,   इसे -- ज़ख़्म अब मत कुरेदो पुराना हुआ  - अगर आप चाहें तो ऐसा किया जा सकता है या जैसा आप सोचें ॥

Comment by vandana on January 3, 2014 at 5:53am

माँग तेरी भरूं आ सितारों से मैं 
ऐसा कह जो गया फिर न आना हुआ /


माँग सूनी हुई जो सितारों भरी
माथे की बिंदी छिनना बहाना हुआ /

मार्मिक !!! आदरणीया सरिता जी 

Comment by coontee mukerji on January 2, 2014 at 9:21pm

उसके आने की टूटी है उम्मीद अब
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ / .....बहुत सुंदर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service