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जिन्दगी पर से भरोसा ही उठा है

2122 1122 1122

प्यार में हमने तो यूँ दर्द सहा है
प्यार के नाम से मन डरने लगा है /

मौत को देखा है कुछ पास से इतना
जिन्दगी पर से भरोसा ही उठा है /

लम्हा हर एक जिओ आखिरी ज्यों हो
मौत पर अपना कहाँ बस ही चला है /

है जमाने का ये दस्तूर अनोखा
अपनों ने आग हवाले यूँ किया है /

बाँट सरिता जो सको प्यार ही बांटो
नफरतों से तो सदा घर ही जला है /

..........................
मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2014 at 2:42am

अपकी ग़ज़ल इस बार बहुत बेहतर हुई है. इसी तरह कोशिश करती रहें आदरणीया.

सादर

Comment by Sarita Bhatia on December 30, 2013 at 1:58pm

शुक्रिया कुंती जी 

Comment by coontee mukerji on December 29, 2013 at 10:53pm

सुन्दर  गज़ल के लिये...बधाई स्वीकार कीजिये सरिता जी.

Comment by Sarita Bhatia on December 28, 2013 at 9:43am

शुक्रिया जितेन्द्र जी 

Comment by Sarita Bhatia on December 28, 2013 at 9:42am

आदरणीय गिरिराज जी इसे ठीक कर लूंगी मार्गदर्शन के लिए आभार 

Comment by Sarita Bhatia on December 28, 2013 at 9:41am

शुक्रिया श्याम जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 28, 2013 at 9:03am

बहुत सुंदर गजल आदरणीया सरिता जी हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 8:32pm

आदरणीया सरिता जी , ग़ज़ल अच्छी कही है , आपको बधाइयाँ ॥ बार बार,  ही शब्द का उपयोग उचित नही होता , भर्ती का शब्द लग रहा है ॥

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2013 at 4:46pm
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको …………..

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