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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल
बहर-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ (प्रथम प्रयास)
..
कभी चाँदनी सी खिला करे,
कभी धूप बन के सजा करे।
..
सभी चाहतों से हों देखते,
तू नज़र-नज़र में बसा करे।
..
कोई ख़्वाब में हो सँवारता,
कोई राहतों की हवा करे।
..
जहाँ लड़खड़ाएँ क़दम वहीं,
कोई हाथ बढ़ के वफ़ा करे।
..
रहें मंज़िलें तेरे सामने,
हो कठिन डगर तो हुआ करे।
..
जिसे देखता हूँ मैं ख़्वाब में,
वही शख़्स तुझमें मिला करे।
..
मेरा फ़न रहे,तेरी सादगी,
मेरी हर ग़ज़ल ये दुआ करे॥
...
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-31.12.2013

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Comment

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Comment by Ravi Prakash on January 2, 2014 at 7:24am
धन्यवाद आदरणीया, सव आप जैसे वरिष्ठ जनों का स्नेह और आशीर्वाद है। पुनः धन्यवाद।
Comment by coontee mukerji on January 2, 2014 at 1:11am


रहें मंज़िलें तेरे सामने,
हो कठिन डगर तो हुआ करे।
..
जिसे देखता हूँ मैं ख़्वाब में,
वही शख़्स तुझमें मिला करे।......क्या बात है रवि जी कुछ बदले बदले अंदाज़ लगा रहे है

.सादर
......

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