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नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव

आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव

 

धधक रही भठ्ठी में

महुवा महक रहा है

धनिया की हंसुली पर

सुनरा लहक रहा है  

कारतूस की गंध

अभी तक नथुनों में है

रोजगार गारंटी अब तक

सपनों में है

हो लखीमपुर खीरी, बस्ती

या, फिर हो डुमरांव

कब तक पानी पर तैरायें

काग़ज़ वाली नांव !

 

माहू से सरसों, गेहूं को

चलो बचाएं जी

नील गाय अरहर की बाली

क्यों चर जाएं जी

ठंडी रात में बूढ़ा-माई

बडबड नहीं करें

हम अपने हिस्से का सूरज

खुद ही चलो गढ़ें

धूप कड़ी हो तो दे जाएं

थोड़ी थोड़ी छाँव

ठंडी ठंडी पुरवाई से

बेहतर है पछियांव.. .

****

मौलिक एवं अप्राकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 2, 2014 at 8:56pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी गीत पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद\ आपको भी नव वर्ष की शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 2, 2014 at 8:55pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 2, 2014 at 8:54pm

आदरणीया वन्दना जी गीत पसंद करने के लिए हार्दिक आभार 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 2, 2014 at 8:29pm

राणा भाई क्या कहने, इस सुन्दर गीत में जिस तरह बिम्बों को पिरोया है, मन मुग्ध हो जाता है, बहुत ही खूबसूरत गीत बन पड़ा है, बहुत बहुत बधाई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 1, 2014 at 5:25pm

नए साल का नंगे पाँव चले आना बस झकझोर गया..निःशब्द कर गया 

कब तक पानी पर तैरायें

काग़ज़ वाली नांव !............................बहुत गहरी बात 

नव वर्ष पर इस सुन्दर सार्थक नवगीत के लिए हार्दिक बधाई आ० राणा भाई जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 1, 2014 at 11:58am

सुन्दर नवगीत !
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं भाई !

Comment by Satyanarayan Singh on January 1, 2014 at 10:53am
आ, राणा प्रताप जी सादर,
नव वर्ष की शुभ कामनाओं सहित इस सुन्दर नवगीत पर सादर बधाई स्वीकार करें.
Comment by MAHIMA SHREE on December 31, 2013 at 8:31pm

ठंडी रात में बूढ़ा-माई

बडबड नहीं करें

हम अपने हिस्से का सूरज

खुद ही चलो गढ़ें

धूप कड़ी हो तो दे जाएं

थोड़ी थोड़ी छाँव

ठंडी ठंडी पुरवाई से

बेहतर है पछियांव.. ..... वाह .. बेहद सुंदर गीत बहुत -२ हार्दिक बधाई आपको सादर

Comment by annapurna bajpai on December 31, 2013 at 8:05pm

हम अपने हिस्से का सूरज

खुद ही चलो गढ़ें

धूप कड़ी हो तो दे जाएं

थोड़ी थोड़ी छाँव

ठंडी ठंडी पुरवाई से

बेहतर है पछियांव.. .,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सुंदर पंक्तियाँ , सुंदर गीत , बधाई आपको आ0 राणा प्रताप जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 8:29pm

आदरणीय राणा प्रताप सर , आशा , निराशा , सन्देश सब कुछ है आपके गीत में । बहुत खूब सूरत गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

माहू से सरसों, गेहूं को

चलो बचाएं जी

नील गाय अरहर की बाली

क्यों चर जाएं जी

ठंडी रात में बूढ़ा-माई

बडबड नहीं करें

हम अपने हिस्से का सूरज

खुद ही चलो गढ़ें

धूप कड़ी हो तो दे जाएं

थोड़ी थोड़ी छाँव

ठंडी ठंडी पुरवाई से

बेहतर है पछियांव.. . ... वाह वा , जवाब नही भाई ॥

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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