अपनी आँखों को जब मैं
बंद करने कि कोशिश करता हूँ
सोने के लिए
तभी तरह-तरह के विचार आते हैं
मानो जैसे अब
मेरे रास्ते बंद हो गए हैं
मैं कायर सा
डरपोक सा
बैठ गया हूँ
तभी कुछ सुनायी पड़ता है
आवाज
किसी की
कहीं से आ रही है
कुछ कहने कि
समझने कि
कोशिश
इतना डरपोक न बन
हिम्मत कर
तू फिर से
मेहनत करके
एक नया नाम, इज़ज़त, शोहरत
कमा सकता है
इतना सोचते-सोचते
पता नहीं कब
आँख लग जाती है
फिर एक नया सवेरा
एक नयी किरण
उम्मीद लेकर
फिर चली आती है.
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सुन्दर आशावादी रचना
अपने आप से ही वार्तालाप ... डर और डर पर जीत का क्रम.... उम्मीद की किरण
बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई स्वीकारिये आ० सौरभ जी
वाह क्या बात है, भावनात्मक अभिव्यकि....सुंदर रचना
सुंदर सकारात्मक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय
स्वनामधन्य ! वाह !!
आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ .. पहली रचना ही आशान्वित कर रही है.
हार्दिक बधाई
आदरणीय सौरभ भाई , बहुत सुन्दर प्रस्तुति लगी , आशाओं - निराशाओं के बीच मन सदा झूलते ही रहता है ॥ बधाई ॥
मन में उठते विचारो को आपने अच्छी सकरात्मक अभिव्यक्ति दी ..बधाई आपको
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
सौरभ जी , आपके भावो में एक तारतम्य है , तारतम्य तब आता है, जब सोच बिखरी न हो i बहुत सुन्दर i बधाई हो i
बहुत सुन्दर प्रयास है सौरभ जी.....प्रयास का सफ़र ज़ारी रहे.सादर
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