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नवगीत -- सियासती दावत

नूतन वर्ष में
नये -पुराने ,सपने
सियासती दावत में
फिर परसे जायेंगे  .
 
वह मन को भरमायेंगे
अतीत भुलायेंगे
नये कपडे ,पुराने
तन को पहनाएंगे
 
शक्कर में पगे हुये
शब्द शब्द बनावटी
ललना से फिसलकर 
प्रजा लुभायेंगे 
 
विजय कुरसी मिलेगी
अधर ,मुस्कान खिलेगी 
सिर पर नेताओं के 
श्वेत कलगी सजेगी
 
हाँ मन के है कारे
यह उजले पर वाले
फिर सरेआम अपना
पोस्टर लगवायेंगे। 
 
नित नये रंग होंगे
नित नये ढंग होंगे
संसद के कामकाज
दल कितने भंग होंगे ?
 
सपने भी सलोने है
जन जन को ढोने है
देश घर, बूढ़े अंस
भार कितना उठायेगे ।
**********

 - शशि पुरवार

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 10:15pm

आदरणीया प्राचीजी, इन विन्दुओं पर अवश्य चर्चा होनी चाहिये. शशिजी और हम सभी के साथ-साथ इस विधा पर लिखने वाले अन्य रचनाकारों को भी लाभ होगा.
सादर
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 9:39pm

आ० शशि पुरवार जी ,

यह रचना नवगीत नहीं है...नवगीत के शिल्प पर कई रचनाओं में काफी बारीकी से चर्चा हुई है..

क्या मुख्य पंक्ति हर बंद के बाद दोहराई जा सकती है..

मुखड़ा किस मात्रिकता पर लिया गया है... 

क्या बंद मात्रिकता का निर्वहन करते हैं..या प्रवाह और अंतर्गेयता के लिए कुछ आतंरिक व्यस्था रखी गयी है..

क्या सार्थक बिम्ब समाहित किये गए हैं..

नवगीत किसी स्थिति का प्रस्तुतीकरण मात्र न होकर अपनी सोच/चिंतन को सकारात्मकता के साथ समाविष्ट करते हुए नयी दिशा भी दिखाता है...

आदरणीया इन कुछ बिन्दुओं पर आप इस अभिव्यक्ति को पुनः देख जाइए... फिर चर्चा को आगे बढाते हैं 

सादर.

Comment by shashi purwar on December 27, 2013 at 7:16am

नमस्ते सौरभ जी , बहुत दिनों से आपकी प्रतीक्षा कर रही थी कि कब आप आये और चर्चा आरम्भ हो , पर आप आये और चुपके से अदृश्य तीर चलाकर चले गए , बरहाल हम समझ गए  और जानते भी है , फिर भी हम चाहते है कि आप इस बारे में विस्तृत खुलकर , तकनिकी पक्ष पर आये , और इंगित करे किन  बन्दों में क्या कमी है …  व्यंग मिश्रित यह रचना एक नया प्रयोग  किया है।  वैसे हर रचना पर आपकी प्रतीक्षा रहती है , हमारा यह  मंच  बारीकियों को खुल कर चर्चा करके ही दूर करता है। आपका आना सार्थक चर्चा को जन्म  देता है पर चुप रह जाना। …  :)
सादर

Comment by shashi purwar on December 27, 2013 at 6:59am

 , वंदना जी , गिरिराज जी , सत्येन्द्र जी , कोणती जी , मीना जी , अनुपम जी , अविनाश जी , गोपाल जी , आप सभी मित्रो का तहे दिल से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:10am

आदरणीया शशि पुरवारजी, आपकी यह रचना कितना कविता है और कितना नवगीत, इसपर एक सार्थक बहस होनी चाहिये थी, जो देख रहा हूँ, नहीं हुई है. कारण कुछ भी रहा हो, नवगीत पर एक सार्थक बहस का अच्छा मौका इस मंच के उन सदस्यों ने गवाँ दिया है, जो नवगीत पर तमाम प्रश्न लिये बिना उत्तर के बैठे हैं.
सादर

Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 9:40pm

आ. शशि पुरवार जी नव वर्ष के उपलक्ष्य में  इस नव गीत के माध्यम से सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:45pm

बहुत सुंदर रचना.शुभकामनाएँ

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 5:24pm

सच कहा आपने अपने नवगीत के माध्यम से  सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बधाई आ0 शशि जी । 

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:22pm

आ० शशि जी बहुत बहुत बधाई सुन्दर नवगीत हेतु | सादर बधाई 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 23, 2013 at 11:44am
सपने भी सलोने है
जन जन को ढोने है
देश घर, बूढ़े अंस
भार कितना उठायेगे ।
**********

  शशि पुरवारजी :सुन्दर नव गीत,नूतन वर्ष में...

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