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हूँ प्यासा इक महीने से /ग़ज़ल/ संदीप पटेल "दीप"

हजज मुरब्बा सालिम

१२२२/१२२२

हूँ प्यासा इक महीने से
मुझे रोको न पीने से

पिला साकी  सदा आई
शराबी के दफीने से  

पिला बेहोश होने तक
हटे कुछ बोझ सीने से 

न लाना होश में यारो
नहीं अब रब्त जीने से 
 
उतर जाने दो रग रग में 
उड़े खुशबू पसीने से

जिसे हो डूबने का डर 
रखे दूरी सफीने से

हुनर आता है जीने का
है क्या लेना करीने से  

गिरा न अश्क उल्फत में
ये होते हैं नगीने से

मिलेंगे "दीप" दिल में ही
दफ़न कुछ गम खजीने से 
 
संदीप पटेल "दीप"
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 12:20am

आप प्रयोगधर्मी हैं.. अच्छी लगी ये ग़ज़ल .. बधाई

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:20am

मुरस्सा ग़ज़ल हुई है ...

Comment by vijay nikore on December 16, 2013 at 5:39pm

//गिरा न अश्क उल्फत में
ये होते हैं नगीने से //

इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:32pm

आदरणीय सन्दीप भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , बहुत छोटी बहर मे सुन्दर गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥उतर जाने दो रग रग में 
उड़े खुशबू पसीने से

जिसे हो डूबने का डर 
रखे दूरी सफीने से

हुनर आता है जीने का
है क्या लेना करीने से  -- वाह वाह , क्या बात है ॥

Comment by ram shiromani pathak on December 15, 2013 at 11:07pm

पिला साकी  सदा आई
शराबी के दफीने से  

पिला बेहोश होने तक 
हटे कुछ बोझ सीने से ///////वाह वाह भाई साहब बहुत खूब। ।  जय हो 

Comment by ajay sharma on December 15, 2013 at 10:35pm

उतर जाने दो रग रग में  
उड़े खुशबू पसीने से........vishesh  hai 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 9:08pm
आदरणीय नीरज जी हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया .....................एक महीने इसीलिए के बीबी साथ थी ................हा हा हा ...............वैसे सच कहूँ तो दो महीनों से हो जाता कई महीनों लिखना पड़ता इसीलिए इक महीने से लिखा है .अब पता नहीं शायद में सही होऊं.....स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 9:06pm
आपका ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय शिज्जू जी .....स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 9:05pm
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कुंती जी ......स्नेह बनाये रखिये
Comment by Neeraj Neer on December 15, 2013 at 9:00pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लगी आदरणीय सारे अश आर बहुत सुन्दर .. लेकिन एक ही महीने से क्यों ... :)

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