For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए/ ग़ज़ल

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए

जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए

 

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए

 

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

 

“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया  

गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 877

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 4:49pm

खूबसूरत ग़ज़ल हुई आ संदीप जी...

हार्दिक बधाई स्वीकारें...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2013 at 9:44am

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

बहुत अच्छा शे’र हुआ है संदीप जी। दाद कुबूलें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2013 at 2:52am

भाई, संदीप जी, कमाल की ग़ज़ल हुई है.  अधोलिखित शेर के लिये बहुत-बहुत बधाई.   

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

वाह भाई वाह !

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

सानी में शायद देखते देखते  के मध्य ही का होना बनता है न ?

शुभ-शुभ

Comment by vijay nikore on December 8, 2013 at 1:53pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है। बधाई।

Comment by Abhinav Arun on December 8, 2013 at 5:36am

हर शेर उम्दा है पूरी ग़ज़ल मुकम्मल और जानदार ..

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए



यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

...बहुत बहुत बधाई आपको संदीप जी 

Comment by ajay sharma on December 7, 2013 at 10:42pm

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

visheshkar is sher ne manmoh liya 

Comment by savitamishra on December 7, 2013 at 6:35pm

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए...बहुत सुन्दर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:44pm

वाह वाह आदरणीय संदीप भाई साहब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2013 at 4:57pm

सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० सदीप जी ..

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए............हालात-ए-हजरा पर सुन्दर शेर 

हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 2:22pm

आदरणीय योगराज सर जी सादर प्रणाम

आपका ह्रदय से धन्यवाद और आभार संशोधन हेतु

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sunday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बधाई स्वीकार करें आदरणीय अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service