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दो पल की है ज़िन्दगी,हँस के जी लो यार !

कटुता को अब भूलकर ,बाटो थोड़ा प्यार!!

देने से मिलता सदा,खुद को भी सम्मान !
इस निवेश की गूढ़गति ,ध्यान रखें श्रीमान !!

रोम रोम पुलकित हुआ ,कितना कोमल वार !
अधरों पर मुसकान है ,तिरछे नैन कटार!!

मधुर कंठ की स्वामिनी,कोमल मृदु बर्ताव !
कष्टों पर औषधि सदृश ,भर जाती है घाव !!

घर घर में दिखते मुझे,दुस्शासन लंकेश !
फिर कैसे बँधते भला,द्रुपद सुता के केश!!

गिरते पत्ते कह रहे,छोटी सी यह बात!
सब मिट्टी का है बना,उसमें मिलना तात!!
*********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 11, 2013 at 3:08pm

पाठक जी

दोहों की  भाव प्रवणता  पर आपको बधाई  i

Comment by Kiran Arya on December 11, 2013 at 3:05pm

गिरते पत्ते कह रहे,छोटी सी यह बात!
सब मिट्टी का है बना,उसमें मिलना तात!!.......बहुत सुंदर हर दोहा ........शुभं

Comment by वेदिका on December 11, 2013 at 12:38pm

बहुत सुंदर और सार्थक दोहे कहे!

Comment by Neeraj Nishchal on December 11, 2013 at 12:26pm

बहुत सुन्दर बातें कही आपने बहुत सुन्दर दोहों में
बहुत बहुत बधाई ।

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