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कुछ दोहे ....................डॉ० प्राची

भाव भँवर को पार कर , अर्पण कर सर्वस्व 

जड़ता जो चेतन करे , उसका चिर वर्चस्व // 1 //

संवेदन से हीन जो , भाव भक्ति से मुक्त 

प्रस्तर सम वह जड़ हृदय , अहंकार से युक्त // 2 //

मूढ़ व्यक्ति के मौन में , परिलक्षित अज्ञान 

संत जनों के मौन का , मूल तत्व निज ज्ञान // 3 //

सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य 

ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 //

नहिं अनंत में वृद्धि है , नहिं अनंत का ह्रास 

जो सअंत निज जानता , पाता वह संत्रास // 5 //

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 3:00pm

आदरणीया प्राची दीदी वाह उत्तम दोहावली एक एक दोहा अपने आप में परिपूर्ण है दोहों में निहित भाव बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है, इस सुन्दर दोहावली पर तहे दिल से बधाई प्रेषित है दी स्वीकार करें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2013 at 2:49pm

सुन्दर भाव लिए सार्थक और सात्विक दोहों के लिए हार्दिक बधाई डॉ. प्राची सिंह जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:20pm

आदरणीय डॉ प्राची जी सादर

इस सुन्दर दोहावली के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2013 at 11:54am

दोहावली निहित भाव कथ्य पर स्वीकारात्मक अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० जितेन्द्र जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 6, 2013 at 10:13am

सुंदर, सात्विक सन्देशप्रद , अंतर का आत्ममंथन करती दोहावली पर बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2013 at 9:56am

आदरणीय अरुण निगम जी 

दोहावली के कथ्य, दर्शन और भाव पर आपकी अनमोल सराहना के लिए हृदयतल से धन्यवाद.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2013 at 9:49am

दोहावली अनुमोदन के लिए आभार आ० विजय निकोर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2013 at 9:49am

दोहावली पर आपकी शुभकामनाओं के लिए सादर धन्यवाद आ० कुंती जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2013 at 9:46am

दोहावली पर आपके प्रश्नों का सहर्ष स्वागत है प्रिय राम शिरोमणि जी 

//संवेदन से हीन जो , भाव भक्ति से मुक्त 
प्रस्तर सम जड़ हृदय वह , अहंकार से युक्त // 2 // यहाँ आपने किस अर्थ में लिया है//

..........प्रस्तर शब्द तो कठोरता के लिए ही प्रयुक्त होता है, यहाँ भी तात्पर्य कठोरता से ही है.

//सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य 
ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 // यहाँ अर्थ नहीं समझ पाया मै..//

....................जागृत बुद्धि ही मन में उठने वाली समस्त विचार तरंगों को देख पाती है... और जब मन की इच्छाएं बुद्धि की तार्किकता की कसौटी पर (ज्ञान की अग्नि में ) तपाई जाती हैं तब व्यक्ति का हर कर्म सधा हुआ ही होता है.

आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2013 at 9:41am

अतुल भाव-भण्डार है, आडम्बर से दूर 

हर दोहा उत्कृष्ट है,दर्शन से भरपूर  ||

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