तमन्ना जाग उठती है , तेरे कूचे में आने से
तेरे चिलमन हटाने से जरा सा मुस्कुराने से/१
अजब ही दौर था जालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी
मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से/२
कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब
हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३
पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल
कि बाहों उठाले तू किसी तरह बहाने से/४
हमारे नाम से साकी सभी को मय पिला देना
सितारे रतजगा के हैं थके हारे जमाने से/५
परेशां हो पशेमां हो यही पूछे जवाबी ख़त
लिखावट क्यूँ नहीं जाती तेरे ख़त को जलाने से/६
लुटा शुहरत गवां दौलत मजे में सारथी देखो
अमीरी है फ़कीरों सी घटेगा क्या लुटाने से/७
..........................................................
वज्न: १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जनाब Shijju Shakoor साहिब ...तहे-दिल से शुक्रिया अदा कर रहा हूँ !...बहुत बहुत आभार इस स्नेह के लिए !..नमन :)
आदरणीय बहुत दिनों बाद मंच पर आ सका ! आप सभी महानुभावों को प्रथमतया प्रणाम करता हूँ !...
वाह! वाह ! वाह! क्या बात है हर शेर दिल में उतरा जाता है एक से एक उम्दा शेर है !
जवाबी ख़त सवाली बन, हमें पूछे परेशां हों
लिखावट क्यूँ नहीं जाती, तेरे ख़त को जलाने से/६
.छा गए हो सार्थ भाई
आदरणीय बैद्य नाथ भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , आपको कोटिशः बधाई !!!
अजब ही दौर था ज़ालिम, ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी
तेरी पलकें उठाने से, तेरी पलकें झुकाने से - !!!! इस शेर के लिये आपको ढेरों दाद !!!!
/अजब ही दौर था ज़ालिम, ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी
तेरी पलकें उठाने से, तेरी पलकें झुकाने से/ वाह क्या बात है भाई सारथी जी दिली दाद कुबूल करें
.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online