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अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं (गीत )

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 

कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं 

 

दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे

अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों  में ढल जाते हैं

 

मेरी कलम की  स्याही पाकर  , रूप गीत का  है सँवरा

रस छंदों से मुक्तक मिलकर, काव्य कलष छलकाते हैं

 

साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते

मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं

 

पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर

कभी ग़मों  की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं

 

मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा  

स्वर  वीणा  के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं

 

दोहों छंदों की माटी में ,नव अँकुर हैं जब-जब फूटे

गीतों की सरिता में बहकर, मन सिंचित कर जाते हैं  

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं

**************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Parveen Malik on November 11, 2013 at 11:41am
मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा
स्वर वीणा के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं.... बेहद खूबसूरत राजेश कुमारी जी .... हार्दिक बधाईयाँ !!

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