नव युवा हे ! चिर युवा तुम
उठो ! नव युग का निर्माण करो ।
जड़ अचेतन हो चुका जग,
तुम नव चेतन विस्तार करो ।
पथ भ्रष्ट लक्ष्य विहीन होकर
न स्व यौवन संहार करो ।
उठो ! नव युग का निर्माण करो ...............
दीन हीन संस्कार क्षीण अब
तुम संस्कारित युग संचार करो ।
अभिशप्त हो चला है भारत !!
उठो ! नव भारत निर्माण करो ।
नव युवा हे ! चिर युवा ..............................
गर्जन तर्जन ढोंगियों का
कर रहा मानव मन क्रंदन ।
सिंहों सी गर्जन अब हुंकार भरो
उठो सत्य प्रति मूर्ति नरेंद्र बनो ।
नव युवा हे ! चिर युवा ........................
गूँजे हुंकार कि काँप उठे दुष्प्रहरी
न मृगछौना बन शावक केसरी ।
चंहु दिशि गुंजित कर दे
ऐसी सिंह दहाड़ करो ।
नव युवा हे! चिर युवा.............
अप्रकाशित एवं मौलिक
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mrig chauna ya shavak jaisee he lagee. prayas jari rahe
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