For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रेत का घरौंदा....................... ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

समंदर किनारे रेत पर

चलते चलते यूं ही

अचानक मन किया

चलो बनाए

सपनों का सुंदर एक घरौंदा

वहीं रेत पर बैठ

समेट कर कुछ रेत

कोमल अहसास के साथ

बनते बिगड़ते राज के साथ

बनाया था प्यारा सा सुंदर 

एक घरौंदा................

वही समीप बैठ कर

बुने हजारों सपनो के

ताने बाने जो

उसी रेत की मानिंद

भुरभुरे से ,

हवा के झोंके से उड़ने को बेताब

प्यारा घरौंदा ..............

अचानक उठी लहर

बहा ले गई वो

प्यारा सुंदर घरौंदा

जिसको सींचा था

सहलाया था , प्यार से

दुलराया था

बिखरे पड़े उन अवशेषों को

समेट फिर चल दी

उन्हे दुबारा सवारने की खातिर

प्यारा सा सपनों का घरौंदा..................

जो शायद सपने ही है

जो कभी सच होते है

कभी नहीं भी

मन की संकरी गलियों मे

यूं ही घुमड़ते हुए बादल से

सपने .............

रेत के घरौंदे ही तो है ...................... ।

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

अन्नपूर्णा बाजपेई

Views: 855

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on November 18, 2013 at 1:57pm

आ० प्राची जी आपका हार्दिक आभार । यूं ही टिप्पणी रूप मे स्नेह बनाए रखिए । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 12:41pm

वही समीप बैठ कर

बुने हजारों सपनो के

ताने बाने जो

उसी रेत की मानिंद

भुरभुरे से ,

हवा के झोंके से उड़ने को बेताब...............भावों की सुन्दर प्रस्तुति 

मन की संकरी गलियों मे

यूं ही घुमड़ते हुए बादल से

सपने .............

रेत के घरौंदे ही तो है ........

अपने आप से संवाद जब दृढ़ता पाता है तब सार्थक तर्क प्रधान अभिवयक्तियाँ स्वतः ही निस्सृत होती हैं 

हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर 

Comment by annapurna bajpai on November 16, 2013 at 10:46pm

आ0 वैद्य नाथ जी आपको रचना पसंद आई मुझे प्रसन्नता हुई । आपका आभार । 

Comment by annapurna bajpai on November 16, 2013 at 10:45pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक  आभार । आपका मार्ग दर्शन सदैव मिलता रहे यही अभिलाषा है । सादर । 

Comment by annapurna bajpai on November 16, 2013 at 10:42pm

आदरणीय विजय जी अपने सही कहा घरौंदे बनाने की इच्छा समंदर के समीप जाने से ही तीव्र हो जाती है मन मे रोमाञ्च हो आता है । 

Comment by Saarthi Baidyanath on November 16, 2013 at 8:30pm

बहुत सुन्दर भावाभियक्ति ....नमन इस रचना को 

वही समीप बैठ कर

बुने हजारों सपनो के

ताने बाने जो

उसी रेत की मानिंद

भुरभुरे से ,

हवा के झोंके से उड़ने को बेताब.....अहा , क्या कहने 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2013 at 8:16pm

कोमल भावनाओं को सार्थक ढंग से शाब्दिक करना भी एक व्यावहारिक कला है. इस प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीया.

शुभेच्छाएँ.

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 4:33pm
सुंदर और सच्चे भावों का व्यथित करना संकलन . यह सच है कि घरोंदे बनाने की इच्छा समुन्दर के समिप जाने से ही तीव्र होती है . इस भाव अभिव्यंजना के लिए साधुवाद
Comment by annapurna bajpai on November 15, 2013 at 11:49pm

आ० नीरज कुमार जी , आ० शिजू जी , डॉ अनुराग सैनी जी आप सभी का हार्दिक आभार । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 10:20pm

वाह बहुत ही भाव पूर्ण और दिल को छू जाने वाली रचना है 

बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service