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कैसे गाऊँ गान....

तुमसे इश्क में भीगी बातें करनी थीं 
लेकिन किसान का मायूस चेहरा 
आता रहा बार-बार सामने 

तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था 
कि कार्तिक मास में 
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे 

तुम्हारी खनकती हंसी सुननी थी 
कि किसानो के आर्तनाद ने रोक लिया 

तुम्हे मालूम है 
कि बाज़ार 
नए नये उत्पादों से अटा-पटा है 
कि दिवाली के लिए मध्य वर्ग 
कर रहा भरपूर खरीदारी 
कितनी भीड़ है गहने जेवर की दुकानों में 
खुशियों से लबरेज़ हैं भरपेटों के चेहरे 
और ऐसे में 
उदासी में डूबे हैं मेरे आस-पास के खलिहान 
चिंता में मगन हैं मेहनतकश किसान 
दूर दूर तक नही दीखता समाधान 

ऐसे बेदर्द समय में मेरी जान 
कैसे गा सकता हूँ मैं
प्यार-मुहब्बत के गान..........

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 486

Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 2:28pm

सुंदर अभिव्‍यक्ति, सही है कि जब पेट खाली हो तो इश्‍क नहीं सूझता, सादर

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:12pm

क्या  बात है आ0 अनवर सुहैल जी , कितनी बढ़िया बात कही आपने अपनी रचना के मधायम से , काश !! सभी ऐसा सोच पाते । आपको बहुत बधाई इस रचना कर्म के लिए । 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 10:05pm

किसानों के मर्म को बयान करती एक सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 अनवर भाई.....

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 5:26pm
बहुत सही कहा सुहैल भाई ,बधाई
Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:15am

वाह वाह  आदरणीय   इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 29, 2013 at 10:57am

तुम्हारी घनी जुल्फों के साए में छुपना था 
कि कार्तिक मास में 
असमय छाये काले पनीले
मनहूस बादलों ने ग़मगीन किया मुझे

वाह! आदरणीय अनवर साहब, बहुत सुंदर भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 29, 2013 at 10:01am

ऐसे बेदर्द समय में मेरी जान 
कैसे गा सकता हूँ मैं
प्यार-मुहब्बत के गान..........waaah

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