रे मन न झूम आज स्वर्णिम प्रभा को देख......कृत्रिम प्रकाश देती दीप की अवलि है
पागल पवन रक्तपात में है अनुरक्त...................वक्त है विवेकहीन होती नरबलि है
देख अति पीड़ित सुरम्यताविहीन कली..लज्जा त्याग के खड़ी ठगा सा खड़ा अलि है
व्याघ्र अति चिन्तित कि गर्दभ चुनौती बना व्यापक दिशा दिशा बलिष्ठ हुआ कलि है
सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना---
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Comment
giriraj ji abhaar
raam shiromani ji abhaar
pradep kumaar ji abhaar
vijay mishra ji abhaar
sushil joshi ji abhar
annapurna ji abhaar
बहुत ही बढ़िया आ0 आशुतोष वाजपेई जी । बधाई आपको ।
इस लघु सार्थक भावाभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 आशुतोष जी....
waah ... bahut sundar ... badhai aur dhanyavaad Dr. Ashutosh Vajpayee ji
वाह आदरणीय आशुतोष जी , इस प्रवाहमय रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , कलियुग की वास्तविकता परिभाषित करती आपकी इस रचना के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!
आपने अभिभूत कर दिया अखिलेश कृष्ण जी बहुत बहुत धन्यवाद और आभार रचना को मान देने के लिए
कलिकाल में सब कुछ उल्टा ही होना है । देश, समाज की शर्मसार करने वाली रोज की घटनाओं को देखो तो लगता है कलियुग जवानी की दहलीज पर कदम रख चुका है और हमारे ही कुसंस्कारों और ढुलमुल नीति से युवा पीढ़ी बेलगाम हो रही है। कुछ कठोर निर्णय लें या फिर किसी अवतार की प्रतीक्षा करें , भारत के उद्धार के लिए । बधाई आशुतोष भाई छोटी किंतु सारगर्भित रचना के लिये।
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