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चॉदनी रात में

खुले आसमान में
विचरण करते चॉंद को देख रहा था
कितना निश्‍चल कितना शांत
चला जा रहा है अपने रस्‍ते
पर प्रकाश से प्रकाशमान पर
ना ईष्‍या ना कुंठा,ना हिनता
प्रकाश दाता के अस्‍त पर
बन कर प्रतिबिम्‍ब उसका
अंधेरे को दूर कर उजाले के
लिये सदैव प्रत्‍यनशील
भले रोक ले आवारा बादल

उसका रास्‍ता
छुपा ले प्रकाश उसका
मगर फिर भी प्रत्‍यन कर
बादलो से निकल कर

पुन: धरती को, अंबंर को, मानव को
प्रकाशमान

अंहकार भी नही शीतलता पर
अपनी चादनी पर,
दूसरे को सुख देकर खुश
मगर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
धंमडी,ईष्‍यावान, लोभी
स्‍वार्थ के वशीभूत
माँ बाप को भी भूलते
जिसके प्रकाश से प्रकाशमान है
आखिर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
मानव क्‍यों है

अपने कर्तव्‍य अपने धर्म से

भटक रहा है
क्‍यों नही चाँद से सबक लेता

क्‍यों नही चाँद से सीखता
पर प्रकाश से प्रकाशमान होकर भी
रौशनी दिखाने का
ईष्‍या,कुन्‍ठा,घंमड को दूर भगाने का
कठिन राहों से भी गुजरते हुए
खुद को समाज को रौशनी दिखाने का

शीतलता प्रदान करने का

अखंड के आखो में बस जाने का

सब के दिल को भाने का ..................

.

अखंड गहमरी मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 1:51pm

रचना में भाव एवं कल्पना काफी अच्छी है... पर कुछ त्रुटियों के मामले में सुशील भाई से सहमत !!!!

Comment by Sushil.Joshi on October 27, 2013 at 6:14am

सुंदर भावाभिव्यक्ति है आ0 अखंड भाई जी..... बधाई हो....

अनेक पंक्तियों में टंकण त्रुटियाँ हैं जिन्हें बताने का प्रयास किया है..... कृपया देख लीजिएगा क्योंकि इतनी त्रुटियाँ सहर्ष स्वीकार नहीं की जा सकती साहित्य में........ और वह भी हिंदी में हों तो और भी दिल दुखता है.....

चॉदनी रात में......................... चाँदनी रात में

विचरण करते चॉंद को देख रहा था...............विचरण करते चाँद को देख रहा था

ना ईष्‍या ना कुंठा,ना हिनता......................ना ईर्ष्या ना कुंठा,ना हीनता

मगर फिर भी प्रत्‍यन कर......................मगर फिर भी प्रयत्न कर

बादलो से निकल कर...................बादलों से निकल कर

पुन: धरती को, अंबंर को, मानव को........................पुन: धरती को, अंबर को, मानव को

अंहकार भी नही शीतलता पर................... अहंकार भी नहीं शीतलता पर

अपनी चादनी पर,............... अपनी चाँदनी पर,

धंमडी,ईष्‍यावान, लोभी................. घमंडी,ईष्‍यावान, लोभी

ईष्‍या,कुन्‍ठा,घंमड को दूर भगाने का...............ईर्ष्या,कुंठा,घमंड को दूर भगाने का

अखंड के आखो में बस जाने का.............. अखंड की आँखों में बस जाने का

कृपया इसे अन्यथा न लीजिएगा और यदि मैंने ऊपर कहीं ग़लत लिखा हो तो अवश्य मुझे बताइएगा......

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 26, 2013 at 10:15pm

बहुत सुंदर भाव, बधाई आदरणीय अखंड जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 26, 2013 at 6:59pm

आदरणीय अखंड भाई , सुन्दर भाव , सुन्दर सन्देश देती आपकी रचना के लिये आपको बधाई !!!!!!

Comment by vijay nikore on October 26, 2013 at 5:55pm

बहुत अच्छे भाव हैं। बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on October 26, 2013 at 12:45pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

कृपया ध्यान दे...

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