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जो भी है आपका करम है सब ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

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ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में

आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में

वक़्त रद्दे अमल का आया तो 

तुम रहम खोजते  हो क़ातिल में

कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी

और क्या खोजते हो बिस्मिल में

 

फिर मुझे याद कर रहा है वो

फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में 

 

अनमने से वो हाल पूछे जब

दर्द कैसे कहूँ है तिल तिल में

 

जो भी है आपका करम है सब

ज़र्फ़ खोजो न मुझसे जाहिल में

          ************

ज़र्फ़ – योग्यता , सलाहियत

पास - लिहाज

रद्दे अमलप्रतिक्रिया

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2013 at 11:26am
आदरणीय नीलेश भाई , गलती , गलती होती है , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , गलती बताने के लिये !!! उस शेर को गज़ल से हटा दूंगा!! आपका पुनः आभार !!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2013 at 11:24am
आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका , तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2013 at 11:22am
आदरणीय अजीत भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका , बहुत शुक्रिया !!!!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 25, 2013 at 9:27am

आदरणीय गिरिराज जी, बहुत बढ़िया गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये

वक़्त रद्दे अमल का आया तो 

तुम रहम खोजते  हो क़ातिल में...यह शेर खास पसंद आया

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2013 at 8:55am

 बहुत ख़ूब ग़ज़ल ... बधाई 
... साहिल में थोडा सा खटक गया क्यूँ की साहिल 'पे'  होता है ....लेकिन पे करने से रदीफ़ चला जाएगा.... बाकी ग़ज़ल बेहद उम्दा ख्यालों से और शिल्प से बंधी हुई है... पुन: बधाई   

Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 5:41am

ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में

आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में............सुंदर शुरुआत की है आपने आ0 गिरिराज जी..... वाह...

अनमने से वो हाल पूछे जब

दर्द कैसे कहूँ है तिल तिल में......... बहुत बढ़िया..... बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति हेतु....

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 25, 2013 at 12:47am

अच्छी ग़ज़ल !!!

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