पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत करना
घुटन सी होती हैं मुझे
आत्मा हूँ तेरी में
इतनी तो कर ही सकती हूँ
मैं मीठी सी एक मनुहार ......
.
."मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना आदरणीया
बधाई हो
अति सुन्दर भाव हैं...बधाई, आदरणीया सविता जी।
सादर, विजय निकोर
दिल की बात सुनना चाहिए | कहते है आत्मा में ईश् का अंश है | भीतर के किवाड खोल, आत्मा की मनुहार सुन -
बहुत सुन्दर भाव् रचना पगी है - हार्दिक बधाई सविता अग्रवाल जी
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