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रावण मरता नहीं। …… नवगीत

प्रतिवर्ष
पुतले  जल जाते  है
पर ,
रावण मरता नहीं


पाप- पुण्य की गठरी खोले
तोते है कितने वाचाल
अंधी श्रद्धा का यहाँ ,पर
फैल रहा है मकडजाल
नोट , करारे चढाने से
राहु
चाल बदलता नहीं .


सूट - बूट पहन कर रावण
गली गली मंडराते है
गर मिल जाये तितली ,कोई
पंख भी कतरे जाते है
भयग्रस्त हो गयी वसुधा
पर 
पाषाण पिघलता नहीं.


उजले पर वाले बगुले ,यहाँ
माही को भी  भरमाते है
मौका मिलते ही ,हाथों से
निवाला ,छीन ले जाते है
उजले वस्त्र पहन कर
कभी
राम कोई बनता नहीं .

प्रतिवर्ष
पुतले जल  जाते है
पर
रावण मरता नहीं। …. !

---- शशि पुरवार

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 690

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Comment by कल्पना रामानी on October 16, 2013 at 9:33am

सुंदर सामयिक गीत लिखा है शशि जी, बहुत बहुत बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 15, 2013 at 11:06pm

सुंदर नवगीत रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया शशि जी

Comment by MAHIMA SHREE on October 15, 2013 at 10:57pm

बढ़िया प्रस्तुति .. आदरणीया शशि जी बधाई आपको

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 8:25pm

आज की हक़ीकत को बयाँ करता हुआ एक सुंदर नवगीत रचा है आपने आदरणीया शशी जी.... बधाई हो....

सूट - बूट पहन कर रावण
गली गली मंडराते है
गर मिल जाये तितली ,कोई
पंख भी कतरे जाते है
भयग्रस्त हो गयी वसुधा
पर 

पाषाण पिघलता नहीं........ आज का एक कटु सत्य है यह....

उजले पर वाले बगुले ,यहाँ
माही को भी  भरमाते है
मौका मिलते ही ,हाथों से
निवाला ,छीन ले जाते है
उजले वस्त्र पहन कर
कभी
राम कोई बनता नहीं ........ वाह क्या करारा प्रहार किया है आपने.... अति सुंदर...

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