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!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2


कर्म जले।
आंख मले।।


धर्म कहां?
पाप पले।


नर्म गजल,
कण्ठ फले।


राह तेरी ,
रोज छले।


हिम्मत को,
दाद भले।


गर्म हवा,
नीम तले।


जीवन क्या?
हाड़ गले।

आफत में,
बह्र खले।


प्रीत करों,
बन पगले।


विव्हल मन,
शब्द टले।


दृषिट मिली,
सांझ ढले।


गर मुफलिस,
बात टले।

कण्टक पथ,
सत्य फले।

दुष्ट यहां,
हाथ मले।


के0पी0सत्यम / मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2013 at 6:27pm

आदरणीया महिमा जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2013 at 6:26pm

आदरणीय विन्ध्येश्वरी भार्इ जी,  आपके स्नेह और गजल पर नजर व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by MAHIMA SHREE on October 10, 2013 at 10:32pm

अच्छा प्रयास है आदरणीय बधाई आपको

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 10, 2013 at 8:57pm
भाई केवल प्रसाद जी! छोटी बह्र में कमाल की रचना बिल्कुल नावक के तीर के समान। लेकिन गुरुजनों से निवेदन है कि मेरी शंका का समाधान करने की कृपा करें- क्या इतनी छोटी बह्र पर भी गजल सकती है।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:18pm

आदरणीया गीतिका जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार।   सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:18pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार।   सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:15pm

आदरणीय भण्डारी भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार।   सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:15pm

आदरणीय विजय भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार।   सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 7:13pm

आदरणीय सुशील भार्इजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार।   सादर,

Comment by वेदिका on October 10, 2013 at 7:11pm

वाह! सुंदर गज़ल! बधाई!! 

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