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ग़ज़ल : बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,

बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,

फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,

हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,

भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 4:04pm

अरुण जी ..इतने छूती बहर में इतनी शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on October 10, 2013 at 10:41pm

बँधी भैंसें तबेले में,

करें बातें अकेले में,.....वाह वाह आदरणीय बिलकुल सही ... पगुराते हुए भैसे अकेले जितना चिंतन मनन करती है अगर इन्सान उसका थोडा सा भी कर ले ... कोई  झमेले में कभी फसे नहीं .... ..:))))))

अजब इन्सान है देखो,

फँसा रहता झमेले में,.... ...  बहुत -२ हार्दिक बधाई शानदार

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 5:17pm

आदरणीया प्राची दी आपकी बधाई पाकर मन प्रसन्न हो गया, आपको खयाल पसंद आया तसल्ली मिली. सच कहूँ तो डर डर के पोस्ट करने की गुस्ताखी की थी. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बना रहे .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 10, 2013 at 5:12pm

प्रिय भाई अरुण जी 

भैसों पर ज़बरदस्त मतला प्रस्तुत किया है.... वाह! इस ओरिजनल शानदार ख़याल के लिए दिली बधाई 

गुस्ताख मक्ता भी बहुत पसंद आया... :))  

हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:23pm

शुक्रिया सचिन भाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:22pm

हार्दिक आभार आदरणीय वैद्यनाथ भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:18pm

हार्दिक आभार आदरणीय अभिनव भ्राताश्री आशीष एवं स्नेह बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:18pm

हार्दिक आभार आदरणीया गीतिका जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:18pm

हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील भाई

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