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कुण्डलियाँ [मेरा परिचय]

कहते सब सरिता मुझे ,बढती हूँ निष्काम
जीवन के पथ हैं कठिन, चलते रहना काम
चलते रहना काम, नहीं रोके रुक पाती
शत्रु सामने देख , सहज दुर्गा बन जाती
मेरा शील स्वभाव , भाव हैं मुझमें बहते
मैं जीवन का स्रोत मुझे सब सरिता कहते //

....................................................

        मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sarita Bhatia on October 6, 2013 at 2:13pm

आदरणीय शीज्जू जी शुक्रिया 

Comment by Sushil.Joshi on October 6, 2013 at 1:22pm

बेहद खूबसूरत परिचय दिया है आपने आदरणीया सरिता जी.... बधाई हो...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2013 at 12:24pm

वाह आदरणीया सरिता जी बहुत खूबसूरत कुण्डलिया है, सरिता का खूबसूरती से वर्णन किया है आपने :-))

कृपया ध्यान दे...

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