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एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!

एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!
(२१२२ १२१२ २२/११२)

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||

सिसकियों में कटी जो रात उसका
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||

शामियाना तेरी मुहब्बत का
एक ऐसा भी ख़्वाब रक्खा है ||

लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या
खामुशी का नकाब रक्खा है ||

याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है ||

ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने
और तुमने शबाब रक्खा है ||

सींचना चाहता हूँ रिश्तों को
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है ||

-- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on October 5, 2013 at 10:45pm

सींचना चाहता हूँ रिश्तों को 
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है ||.............. बहुत बढ़िया अशर , पूरी ही गज़ल खूबसूरत हुई है , बहुत बधाई आपको । 

Comment by कल्पना रामानी on October 5, 2013 at 10:09pm

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||...बहुत सुंदर मतला

पूरी गजल  बहुत ही शानदार है, बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 5, 2013 at 9:59pm

आदरणीय आशीष भाई , बहुत शानदार गज़ल कही है आपने !!!! हार्दिक बधाई !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:51pm

सर पूरी गजल एक बेहतरीन प्रस्तुति है , मेरे पास तारीफ़ के लिए शब्द नही है ! लाजवाब ! बहुत बहुत बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:00pm

वाह भाई आशीष जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है वाह दिली दाद कुबूल करें

Comment by वेदिका on October 5, 2013 at 8:39pm

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है || ,,,बेहद शानदार मतला हुआ है!

वैसे तो पूरी गज़ल बहुत खूब हुयी है| मुझे ये शेअर सबसे सशक्त लगा है|

सिसकियों में कटी जो रात उसका
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है || ,,, बधाई प्रेषित है प्रिय अनुज आशीष जी!

 

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