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१.

टेढ़ी मचिया

टिमटिमाता दिया

टूटी खटिया.

 

२.

वर्षा की बूँदें

रिसती हुई छत

गीली है फर्श.

 

३.

छीजती आस

बिखरते सपने

टूटा साहस.

 

४.

छोटी सी जेब

बढती महंगाई

भूखा है पेट.

 

५.

बूढ़ा छप्पर

दरकती दीवार

खंडित द्वार.

 

६.

ठंडा है चूल्हा

अस्त होता सूरज

छाया कोहरा. 

     - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 9:46pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:37pm

आदरणीय बृजेश जी बहुत ही सुंदर हाइकु , एकदम सधे  हुए बहुत बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 8:26pm

आदरणीय बैद्यनाथ जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Saarthi Baidyanath on October 3, 2013 at 8:15pm

:

टेढ़ी मचिया

टिमटिमाता दिया

टूटी खटिया.

ग्रामीण परिवेश के छोटे छोटे बिम्बों को पकड़ा है आपने ..! शब्दावली भी उसी ज़मीन की है ..! उम्दा हाइकू ... :)

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:54pm

आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:53pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:53pm

आदरणीय शरदिंदु जी वही बात आपके लिए भी कहूँगा जो, आदरणीया कुंती जी के लिए कहीं.

आपके आशीष और स्नेह के लिए आभारी हूँ!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:51pm

आदरणीया कुंती जी अब मेरी रचनायें पढ़ते समय आपका स्नेह हावी होने लगा है!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:50pm

आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:45pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार! टाइप करते समय एक शब्द छूट गया था. उसे सही कर दिया है.

सादर!

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