For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! काम अनंग समान हुए !!!

दुर्मिल सवैया ... आठ सगण यथा-
112 112 112 112 112 112 112 112

कलिकाल अकाल समाज ग्रसे, मन आकुल दीप पतंग हुए।
नित मानव दंश करे जग को, रति-काम समान दबंग हुए।।
घर बाहर ताक रहे वन में, जिय चोर उफान करे तन में।
अति हीन मलीन विचार धरे, निज मीत सुप्रीति छले छन में।।1

जग घोर अनर्थ अकारण ही, नित रारि-प्रलाप सहालग है।
कब? कौन? कथा सुविचार करे, अपलच्छन कर्म कुमारग है।।
जब धर्म सुनीति डिगे जग में, अवतार तभी जग तारक हो।
अब मोह नहीं बस छोह सही, जब पूत कपूत विदारक हो।।2

जब आशु नही फिर तोष कहां, धवलेश्वर चन्द्र त्रिशूल लिए।
गल नाग सजे नर मुण्ड भले, मदिराचल का विष पान किए।।
फल फूल लता सहमे-सहमे, वन चन्दन-केसर शेष रहे।
कब क्रोध करें शिव शंकर जी, झट राख करें पल देख रहे।।3

धनुवा पर तीर धरे अति तीव्र, चले अस पुष्प समान लगे।
सर भेद गया हिय शंकर के, अति तेज बयार गुमान ठगे।।
शिव त्रास दिए तब काम जले, रति चीख-विलाप सहाय हुए।
जब शीश झुके शिव के पद में, तब काम अनंग समान हुए।।4

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 5, 2013 at 11:26am


आदरणीय सौरभ सर जी, पूर्व के छन्द  में वांछित संशोधन कर दिया है। यथा-कलिकाल अकाल समाज ग्रसे, मन आकुल दीप पतंग हुए।..जी!  आशा करता हूं कि अब छन्द खारिज नहीं होगा। आपके स्पष्ट विचार की गंभीरता को मान देते हुए। आपका हृदय तल से बहुत बहुत आभार। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2013 at 10:49pm

केवल प्रसादजी, मुझे आपके छंद के पदों का अर्थ समझाने का सादर धन्यवाद. मैं वस्तुतः अनुगृहित हुआ..

कलिकाल अकाल समाज ग्रसे, मन आकुल व्याकुल पतंग* हुए।...
आपकी दुर्मिल सवैया का उपरोक्त पद विधान के अनुसार गलत हैं, जिसे संभवतः हर छंदप्रेमी समझ पा रहा है.

अब क्लियर, आदरणीय ?

मुझे यह कहना था.

यदि आपको आपकी रचनाओं पर विधान के अनुरूप शुद्धता के लिए सुझाव पसंद नहीं तो आगे से ऐसी चर्चा आपकी रचनाओं पर नहीं होंगी.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 4, 2013 at 8:01pm

आदरणीय सुशील भार्इ जी। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 4, 2013 at 7:59pm

आदरणीय अखिलेश भार्इ जी। आपके स्नेह और छन्द अनुमोदन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 4, 2013 at 7:57pm

आदरणीय सौरभ सर जी।   //मन आकुल दीप पतंग हुए//   सर जी,----/ मन की आकुलता के कारण नन्हा दीप पतंग अर्थात वह स्वयं को सूर्य समझ रहा है।/  पतंग,  सूर्य का पर्यायवाची है। आपके स्नेह और आशीष हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 4, 2013 at 7:48pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अन्नपूर्णा जी। सादर,

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 7:28am

सुंदर मनोभाव हैं आदरणीय केवल जी.... किंतु शिल्प की दृष्टि से मैं आदरणीय सौरभ जी से सहमत हूँ....

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 3, 2013 at 10:58pm

केवल जी बधाई । अलंकारिक शब्दों का सुंदर प्रयोग , सुंदर भाव ।

मन आकुल व्याकुल पतंग* हुए // मन आकुल व्याकुल  दंग  हुए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 10:13pm

इस सवैया के पहल् दोनों पद ख़ारिज़ हैं. सगण (॥ऽ) की आठ आवृतियों का निर्वहन हुआ ही नहीं है.  जिस कारण यह दुर्मिल सवैया नहीं हो पाया है.

पतंग और दबंग में क्रमशः और द  पर भार न पड़ कर क्रमशः तथा पर पड़ते हैं. इस हिसाब से क्रमवार सगण की स्थिति बनती ही नहीं.

//मन आकुल दीप पतंग हुए'' गजल की तरह छन्द में भी मात्राएं आवश्यकताओ के अनुरूप प्रयोग में लायी जा सकती हैं।  किन्त इससे बचे रहना समझदारी है।// 

इस वाक्य से क्या कहना चाह रहे हैं आप, भाईजी ? मैं कुछ समझा ही नहीं.

मन आकुल दीप पतंग हुए  मॆं व्याकुल  शब्द को हटा कर आपने दीप  कर दिया. दूसरे पद में क्या होगा, भाई ?

अन्य पदों की व्यवस्था सम्यक प्रतीत हो रही है.

शुभेच्छाएँ

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:27pm

आदरणीय केवल भाई जी क्या ही सुंदर छन्द रचना की है बहुत बधाई आपको । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
13 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service