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प्रेम दुलार जगावत मानवता मन भावत भारत प्यारा ।
गीत खुशी सब गावत नाचत मंगल थाल सजावत न्यारा ।
बंधु सभी मिल बैठ करे नित चिंतन सुंदर हो जग प्यारा ।
ये सपना मन भावन देख ‘‘रमेश‘‘ खुशी मन गावत न्यारा ।
.........................................................
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 5:15pm

सुन्दर प्रयास हेतु // आपको हार्दिक बधाई!

Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:49pm

बहुत ही अच्छा प्रयास! आपको हार्दिक बधाई!

सुधि जनों के सुझावों पर ध्यान दें और प्रयासरत रहे.

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 25, 2013 at 10:38am

आदरणीय रमेश भाई प्रयास बहुत ही अच्छा किया है आपने इस बार मात्राएँ ठीक हैं किन्तु भाव खुल के नहीं आ पा रहा है जैसा कि संदीप भाई जी ने भी कहा थाल के साथ न्यारा नहीं न्यारी होना चाहिए ठीक वैसे ही अंतिम पद ( यानि ‘‘रमेश‘‘ खुशी मन गावत न्यारा) मुझे यहाँ भाव खुल के नहीं दिख रहा है. खैर सतत प्रयासरत रहें शीघ्र ही सध जायेगा इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 25, 2013 at 10:20am

आदरणीय रविकर जी, आदरणी गिरिराज जी, आदरणीय संदिपजी एवं आदरणीया अन्पूर्ण दीदीजी आपलोगो के स्नेह मै गौरवांवि हो अाप सब का सादर आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 24, 2013 at 5:07pm

आदरणीय रमेश भाई , छंद ज्ञान नही है मुझे , विचार , भाव , शब्दों का चयन बहुत बढ़िया है , आपको हार्दिक बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on September 24, 2013 at 4:56pm
sunadar savaiya hetu apko badhai .
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:24pm

आदरणीय सुखद प्रयास हेतु बधाई हो 

किन्तु 

मंगल थाल सजावत न्यारा । क्या यह सही है थाल है तो न्यारी होना चाहिए था न 

Comment by रविकर on September 24, 2013 at 2:23pm

बढ़िया अभ्यास हो रहा है आदरणीय रमेश जी-
शुभकामनायें-

कृपया ध्यान दे...

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