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सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब 
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और  इरादे मजबूत
सोच लो ?

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on September 21, 2013 at 11:35am

बहुत सार्थक भाव..


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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 20, 2013 at 9:36pm

वाह क्या चेतावनी है वाह ,इसे खतरनाक कहूँ या सुंदर?  क्योंकि चेतावनी तो खतरनाक है मगर रचना खूबसूरतl बहरहाल बधाई स्वीकार करें

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 7:55pm

:-) आराम से आ, महिमा जी ज़रा हौले हौले ...वैसे आपकी रचना के आत्मविश्वास और विजन सराहनीय हैं आज समय स्पष्ट और सशक्त कहने का है संकेतों का युग छायावाद हो गया ...प्रगति के काल में सब पारदर्शी हो सत्यम शिवम सुन्दरम हो !! यथा शुभ शुभ ..मंगल मंगल !! बहुत शुभकामनायें आपकी साहित्यिक मेधा दिनानुदिन प्रगति करे ...इस मंच से भी संकलन परों को खोलते हुए के लिए कवयित्री महिमा जी को बधाई :-) 

Comment by वेदिका on September 20, 2013 at 7:51pm

सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब 
तुम होगे

सलाम आपकी वैचारिकता को प्रिय महिमा जी!

शुभकामनायें !!!

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