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पूर्वाग्रह तो छोडिये मिलिए स्व बिसराय

मुख धरे डली नून की मीठो स्वाद न पाय

अनुशासित होकर रहे पतंग उड़े अकास

भागी फिरे कुरंग सम डोर पिया के पास

सिकुड़े गलियारे सहन ऊँची मन दहलीज

गलती माली की रही  कैसे बोये बीज

कब तक परछाई चले पूछ न कितनी दूर

धूप चढ़े सिर बावरी छाया थक कर चूर 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 12:23am

पूर्वाग्रह तो छोडिये मिलिए स्व बिसराय

मुख धरे डली नून की मीठो स्वाद न पाय

आदरणीया वंदना जी ..छंद वद्ध अच्छी रचना ....सुन्दर सीख
भ्रमर ५

Comment by vandana on September 10, 2013 at 6:32am

बहुत बहुत आभार आदरणीय बृजेश जी, डॉ. ललित जी और विजय जी 

Comment by विजय मिश्र on September 9, 2013 at 12:18pm
वंदनाजी ! साधुवाद , दोहे तो हैं ही अनूठे ,इतने सुंदर सारगर्भित भाव को बिम्ब के साथ स्वेम में समेटे हुए हैं कि क्या कहने ! अनेक बधाई |
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 8, 2013 at 6:06pm

बहुत बढिया दोहे  है 

Comment by बृजेश नीरज on September 8, 2013 at 10:15am

बहुत ही सुन्दर! अप्रतिम! कथ्य बहुत उच्च कोटि का है। आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vandana on September 8, 2013 at 6:13am

बहुत बहुत आभार आदरणीय रविकर सर ,भंडारी सर और मंजरी मैम  

Comment by mrs manjari pandey on September 7, 2013 at 10:07pm

पूर्वाग्रह तो छोडिये मिलिए स्व बिसराय

मुख धरे डली नून की मीठो स्वाद न पाय   आदरणीया  वंदना जी    सुन्देर दोहे. हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2013 at 8:25pm

आदरणीया वन्दना जी , बहुत बढिया दोहे रचे है आपने , बधाई !!

Comment by रविकर on September 7, 2013 at 7:41pm

बहुत बढ़िया दोहे-
आभार आदरेया-

पूर्वाग्रह तो छोडिये, मिलिए स्व बिसराय |
नून डली मुख में धरे, स्वाद मधुर नहिं पाय ||


अनुशासित होकर रहे, उड़े पतंग अकास |
भागी फिरे कुरंग सम, डोर पिया के पास ||

Comment by vandana on September 7, 2013 at 4:06pm

आदरणीय अरुण जी और पाठक जी  बहुत बहुत धन्यवाद सुझाव के लिए

 प्रवाह की बाधा कहाँ कहाँ लगी कृपया यह भी बताइये छंद के मामले में मेरी स्थिति बहुत कमजोर है सुधार के लिए आप सभी का मार्गदर्शन चाहती हूँ 

जगण दोष को यूँ दूर किया जा सकता है 

भागी फिरे कुरंग सम  डोर पिया के पास

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