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तुमने हारा है मुझपे दिल अपना...

तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी  है ।

तुमने हारा  है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥

 

तुम भी सोते नहीं हो रातों को,

हम भी बस करवटें बदलते हैं ।

तुम शमा बन के उधर जलते हो,

हम इधर मोम  से पिघलते हैं ॥

 

उस तरफ तुम भी बेक़रार से हो, और यहाँ पर भी बेकरारी है ।

तुमने हारा  है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥

 

तुम बहुत दूर हो मुझसे लेकिन,

जाने क्यूँ आस-पास लगते हो ।

कल तलक अजनबी के जैसे थे,

आज क्यूँ इतने ख़ास लगते हो ॥

 

दिल तो पहले ही "वीर" दे बैठे, अब तो ये जान भी तुम्हारी है |

  तुमने हारा  है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥

 

तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ॥

तुमने हारा है मुझपे दिल अपना, हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 11, 2013 at 2:47pm

आदरणीय annapurna bajpai  जी बहुत बहुत शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए 

Comment by annapurna bajpai on September 11, 2013 at 1:15pm

तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ॥

तुमने हारा है मुझपे दिल अपना, हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥ .....

वाह !  शानदार प्रस्तुति बहुत बधाई आपको । 

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 4:34pm

आदरणीय Dr.Prachi Singh जी बहुत बहुत शुक्रिया मेरी तरफ से पूरी कोशिश है की गलतियाँ कम हों .... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 10, 2013 at 3:58pm

बहुत खूबसूरत गीत आ० अनिल चौहान जी 

प्रेम, माधुर्य, शृंगार से पगी सुन्दर अभिव्यक्ति.. गीत के शिल्प में कहीं कहीं थोड़ी सी गेयता को निर्बाध करने की आवश्यकता है.. जो मात्रानुसार लिखने पर धीरे धीरे सही होती जायेगी.

फिलहाल इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें 

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 9, 2013 at 7:04am

आदरणीय  बृजेश नीरज   जी  बहुत बहुत शुक्रिया मार्गदर्शन के लिए .... आपकी बात ध्यान में रखूँगा 

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 9, 2013 at 7:03am

आदरणीय  जितेन्द्र 'गीत' जी  बहुत बहुत शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए, 

Comment by बृजेश नीरज on September 7, 2013 at 10:34pm

बहुत अच्छा प्रयास है। इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
एक निवेदन है कि किसी भी विधा में लिखने की कोशिश के साथ साथ उस विधा की जानकारी भी आवश्यक है। छंद विधान समूह में लेख हैं उनका अध्ययन करे।
शिल्प के साथ-साथ रचना में कथ्य की गंभीरता पर भी ध्यान दें।
सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 7, 2013 at 9:51pm

तुम भी सोते नहीं हो रातों को,

हम भी बस करवटें बदलते हैं ।

तुम शमा बन के उधर जलते हो,

हम इधर मोम  से पिघलते हैं ॥........वाह! क्या कहने..

बहुत बहुत बधाई आदरणीय अनिल जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2013 at 3:52pm

सुंदर गीर के लिए हार्दिक बढ़ाई 

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 7, 2013 at 6:27am

आदरणीय  annapurna bajpai  जी उत्साहवर्धन के लिए  बहुत बहुत शुक्रिया  

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