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मुक्तिपथ........................डॉ० प्राची

हे देवपुरुष !

हे ब्रह्मस्वरूप !

कहती हूँ तुम्हें - श्रीकृष्ण !

 

पर

माधवमैं -  

वंशी धुन सम्मोहित

प्रेम साख्य अठखेलियों की

परिकल्पना में रास स्वप्न संजोती  

तुम्हारी चिर सखि शक्ति राधिका नहीं !

 

और माधवमैं -

आत्मिक आलौकिक

प्रेमाधीनसुधि हारी

कर्म बन्ध विरक्ताजग त्यक्ता,

तुममें लीन तुम्हारी भाव-परिणिता मीरां भी नहीं !

 

हे माधव ! मैं -

नतमस्तककरबद्ध,

चरण-वंदिताश्रद्धार्पिता

ज्ञान पिपासुतिह मैत्रेयारूढ़,

जीवन समर में अकिंचन किंकर्तव्यविमूढ़...

लिए मन-वचन-कर्म अनुप्राणित समर्पण, पार्थ सम हूँ शरण !

 

हे कृष्ण !

बन्धमुक्त-आबद्ध समन्वय के सारे

सुलझाओ संशय...

गुरु सम सदिश् करो जीवन-रथ

छटे धुँधलका, ज्ञानालोकित हो जीवन, पाए मुक्तिपथ !

 

 

 

मौलिक और अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 12:51pm

आदरणीय एडमिन महोदय 

श्याम जुनेजा जी की टिप्पणी 

//अभी अभी उतरी यह रचना आपके लिए ...पोस्ट पर डालता तो सेंसर बोर्ड से निकलने में पता नहीं कितना समय लगे//

और उसके बाद एक कविता ........................................से मुझे सख्त आपत्ति है 

अभी अभी उतरी यह रचना आपके लिए.  ऐसा कह कर कोई भी पाठक बेमतलब रचना लिखे .....इसका कोई औचित्य समझ में नहीं आता

आपसे निवेदन है कि इसे संज्ञान में लेते हुए ऐसी व्यक्ति विशेष को कोट करती अनावश्यक टिप्पणियों पर आप कड़ी कार्यवाही करें 

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:55am

आदरणीय जुनेजा जी,
आप यहां हैं इस बात की हम सबको खुशी है। आपसे कुछ हम सब सीख सकें, यह हम सबके लिए सौभाग्य की बात होगी।
हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं समाप्त हो जाती है जहां से दूसरे व्यक्ति की शुरू होती है। आप टिप्पणी डिलीट न करें। एडमिन उचित समझेंगे तो स्वयं करेंगे।
सादर!

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:49am

सच कहा आप ने आ० बृजेश जी आदरणीया प्राची जी लेखनी में गज़ब का सम्मोहन है कायल हूँ मैं उनकी रचनाओं की

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 11:36am

आदरणीया प्राची जी,
आप की रचनाओं में जो गहनता और ईश के प्रति सहज समर्पण के साथ, जिस जिजीविषा के दर्शन होते हैं वह अनुपम है। इधर आपकी जितनी रचनायें आयी हैं उन सब में गजब का सम्मोहन है। हर रचना पहली से उन्नत और श्रेष्ठ होती है।
यह रचना बहुत ही सुन्दर है। जिस सहजता से आप शब्दों को पिरोती हैं कि भाव बरबस सामने प्रकट हो जाते हैं। लगता है कि रचनाकार ने मेरे ही मन की बात कह दी। आप द्वारा प्रयुक्त शब्द रचना में अपने अर्थ को स्वयं ही कह देते हैं चाहे उनका अर्थ पाठक को मालूम हो या नहीं। यही विशेषता होनी चाहिए। इसी तरह की रचनायें सरल और कठिन भाषा के विवाद को समाप्त करती हैं।
आपको बार बार नमन!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 10:04am

अपने आत्मीय शब्दों से अभिव्यक्ति को मान देने के लिए आपकी आभारी हूँ आदरणीया मीना पाठक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 10:00am

रचना पर लेखन और सम्प्रेषण को आश्वस्त करती उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपकी आभारी हूँ आ० अभिनव अरुण जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 9:59am

रचना पर प्रशंसात्मक अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० वंदना जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 9:58am

अभिव्यक्ति की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० केवल प्रसाद जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 9:31am

आदरणीया मंजरी जी , 

मुक्तिपथ अभी आलोकित कहा हुआ... यह तो निवेदन मात्र ही है :))))

खैर अभिव्यक्ति आपको पसंद आई ..आपके अनुमोदन के लिए धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2013 at 9:30am

आदरणीय अविनाश बागडे जी 

//शब्द शब्द इस कविता का जैसे अंतस की गहराइयों तक उतर गया //

अभिव्यक्ति को इतनी तन्मयता से पढ़, टिप्पणी करने के लिए हार्दिक धन्यवाद .

सादर 

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