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मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे

पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे

 

चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो  

मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे

 

कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी

सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे

 

कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर 

मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे

 

तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा

तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे

 

तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ; मोतबर= विश्वसनीय

 

 मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by नादिर ख़ान on August 27, 2013 at 10:18pm

अदरणीय ललित कुमार जी, क्या कहने...

लाजवाब गज़ल ...

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 27, 2013 at 10:06pm
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 27, 2013 at 10:05pm

Shijju Shakoor

जी मुक्तसर का मतलब है - कम
शुक्रिया आदरणीय सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 27, 2013 at 7:15pm

आदरणीय डॉ. ललित सर आपकी ग़ज़ल हमेशा ही बेहतरीन और दिल को छूने वाली होती है, यह भी एक बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबूल फरमाएँ

//कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर 

मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे//  यहाँ "मुक्तसर" शब्द का अर्थ समझाएँ तो इस शेर को समझने में आसानी होगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2013 at 6:58pm

आदरणीय ललित जी , तेहतरीन गज़ल हुई , वाह वाह !! बधाई !!

चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो  

मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे------------ क्या बात है !!

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