For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ की डायरी से

१- सितार के टूटे हुए तार
 वह एक भावुक, कमनीय सी लडकी; सब सहपाठी छात्राओं से, आयु में कहीं छोटी।  कई क्लासें फांदकर बारहवीं तक पहुंची थी ताकि विधवा माँ को, हर बार, फीस के पैसे न चुकाने पड़ें.  उसके अभावग्रस्त परिवार में, सपनों के लिए, कोई स्थान न था. लेकिन ख्वाबों के पर, फिर भी, निकल ही आते हैं! अम्मा ने किसी प्रकार पैसे जोड़कर, उसे एक नन्हा सा सितार दिलवाया क्योंकि स्कूल में, सितार भी एक विषय था. सितार को देखते ही, उसे रोमांच हो आया. हृदय की सुप्त उमंगें, उमड़ पड़ीं.
अब वह रोज सुबह, जल्दी उठकर रियाज़ करने लगी. उसकी नन्हीं उँगलियाँ, वाद्य के तारों से खेलतीं.  साथ ही मन कुलांचे भरता रहता, उँगलियों से खून रिसने लगता; किन्तु अभ्यास नहीं बंद होता. कक्षा में जब छात्राएं, अध्यापिका के साथ सितार बजातीं तो उसकी उँगलियों का जादू, स्वरलहरियों में तैरकर, झंकृत हो उठता; यहाँ तक कि शिक्षिका का प्रदर्शन भी, फीका पड़ जाता।
"गुरु गुड़ ही रहे और चेला चीनी हो गया" वाली स्थिति, अध्यापिका के लिए असह्य होती जा रही थी और वह, उसे अपमानित करने का, बहाना ढूंढ रही थी. भोली लड़की इस बात से अनजान थी. एक दिन शिक्षिका को वह बहाना मिल गया. एक दिन जब कक्षा में, अभ्यास शुरू हुआ तो सभी लड़कियों ने रियाज के लिए, एक एक सितार उठा लिया। संयोग से उसके हाथ, जो सितार लगा, वह पहले से ही टूटा था. किसी ने पहले उसे तोड़ा, फिर टूटे हुए तारों को, अटका दिया। सितार पर उंगलियाँ फेरते ही, तार अलग हो गये.

बस फिर क्या था!! टीचर उस पर बरस पड़ी और 'फाइन' भरने का फरमान सुना दिया। लड़की की आँखें छलक आयीं। उसकी भावनाएं आहत तो हुईं ही पर उससे भी बड़ी बात ये थी कि जुर्माना कैसे चुकाया जाये?! घर में इतने पैसे कहाँ थे! अम्मा को बताने की हिम्मत न हुई. वे सुन लेतीं तो बेचारगी में झल्लातीं।  उसने चुपके से यह बात, अपने बड़े भाई को बताई। दोनों ने मिलकर अपनी अपनी गुल्लकें तोड़ दीं. कई सारे, चिल्लर मिलाकर, किसी भांति जुर्माने की रकम जमा की.
जब उसने शिक्षिका के हाथ पर वो रकम रखी तो चिल्लरों का ढेर देखकर,  बिना कहे,  वे सब कुछ समझ गयीं. नन्ही सी लडकी की व्यथा,  हृदय को विगलित कर गयी. उसके लिए मन में, ममत्व फूट पड़ा. सारे दुराग्रह, ममत्व के उस सोते में बह निकले. उस दिन के बाद से, वह छात्रा, उन्हें बेटी की तरह अज़ीज़ हो गयी.
२- कॉटन का लंहगा
उस छोटी लडकी को, संगीत का शौक था. माँ ने कहा, "गाना सीखने के लिए पैसे दे दूंगी लेकिन डांस के लिए नहीं...दो दो चीजों के लिए, फीस नहीं भर सकती" गाने के  अलावा, नृत्य की कक्षा  भी, वहां  चलती रहती. लडकी अक्सर, हसरत भरी निगाहों से, डांस की प्रैक्टिस को देखती. ध्यान से उन सभी 'स्टेप्स' को मन में बिठाती और घर आकर चुपके चुपके, उनका अभ्यास करती. एक बार नृत्यशाला की तरफ से, कोई आयोजन रखा गया. सामूहिक नृत्य भी, उस आयोजन का एक हिस्सा था. जोरों से अभ्यास चलने लगा. ऐन वक़्त पर, उनमें से एक लडकी, बीमार पड़ गयी. गुरूजी को समझ न आया कि अब वे क्या करें. सहसा उन्हें कुछ सूझा और उन्होंने इशारे से उस नन्हीं लडकी को बुला लिया. उसे उन्होंने कई बार, नृत्य देखते हुए पाया था.
उन्होंने उससे, नृत्य के स्टेप्स को, कॉपी करने का आग्रह किया. आश्चर्य! लडकी ने उनकी अपनी छात्राओं से भी, कहीं बेहतर, नाचकर दिखाया. आयोजन में उसका भाग लेना, सुनिश्चित हो गया. प्रोग्राम वाले दिन, जब सब लडकियों ने; अपने अपने लंहगे निकालकर , पहनना शुरू किया- वह कुंठा से भर उठी . कहाँ उन सबके, चमकते हुए, साटन के लंहगे और कहाँ उसका, साधारण सा सूती लंहगा! हालांकि अम्मा ने, अपनी सामर्थ्य से बढ़कर, पैसे खर्च किये थे- कपडे और गोटे को खरीदने में. अपने हाथों से उसे सिला था, गोटे की किनारी से, सजाया था. सभी नृत्यांगनाएं सज- संवरकर तैयार हो गयीं पर गुरूजी को वह लडकी नहीं दिखी. वे उसे ढूंढते हुए, ड्रेसिंग रूम में पहुचे. वहां वह हताश सी, एक कोने में बैठी थी. उन्होंने पूछा- "तुम तैयार नहीं हुईं? तुम्हारी ड्रेस कहाँ है???"
छुटकी ने सकुचाते हुए, लंहगा उनकी तरफ बढा दिया. लंहगा देखते ही, वे द्रवित हो उठे; उसे ढांढस बंधाते हुए बोले, " अरे अच्छी तो है...शुक्र है तुम ड्रेस लायी हो... मैं तो डर गया था कि शायद, तुम्हारे पास ड्रेस है ही नहीं! चलो फटाफट रेडी हो जाओ" कहते हुए उन्होने सायास, एक छद्म मुस्कराहट ओढ ली. बच्ची की असहायता ने, उन्हें भीतर तक हिला दिया था और उस दिन के बाद से वे उसे, नृत्य की निःशुल्क शिक्षा देने लगे.
ये दोनों घटनाएं, मेरी माँ के बचपन से जुडी हैं. अब आप इन्हें, लघुकथा कहें या संस्मरण- यह आप पर छोडती हूँ.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1116

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 23, 2013 at 7:25pm

अत्यंत जीवंत संस्मरण ...भाव विभोर करते ..हार्दिक साधुवाद इन्हें शेयर करने के लिए !

Comment by Aditya Kumar on August 23, 2013 at 6:40pm

भाव विभोर कर देतें है आपके संस्मरण जीवंत लघु कथा के रूप में 

Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 6:12pm

आ0 विनीता जी बहुत ही मार्मिक चित्रण , लघु कथा के रूप मे प्रस्तुत ये संस्मरण वाकई दिल को छूते है । यहाँ मै आ० गीतिका जी की बात से भी सहमत हूँ कि यदि अलग ब्लॉग मे पोस्ट होती तो ज्यादा रुचिकर रहता । यों आपकी कथाएँ प्रभावशाली है ।

Comment by वेदिका on August 23, 2013 at 4:03pm

मन को छू लेने वाली घटनाएँ| बहुत इत्मीनान से पढ़ी गयी और सकारत्मक छाप छोड़ गयी| मेरे विचार में अगर ये दोनों घटनाएँ अलग अलग ब्लॉग में पोस्ट कीं जातीं तो और भी ज्यादा प्रभाव छोडती|

बहुत बहुत शुभकामनाएं !!  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service